इनकार कर रही है। यद्यपि परिस्थिति नाजुक है, फिर भी अभी पत्र-व्यवहार जारी है और हमें आशा है, उसका अन्त सन्तोषजनक होगा। दूसरे भी ऐसे मुद्दे हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूपसे समझौतेसे सम्बन्धित या उत्पन्न हैं। उन मुद्दोंमें से कोई भी एक मुद्दा समाजमें आग भड़कानेके लिए काफी है। हम सरकारको सावधान हो जानेकी चेतावनी देते हैं और आशा करते हैं कि वह सतर्कतासे काम लेगी। किन्तु यदि वह ऐसा नहीं करती तो हम जानते हैं कि सत्याग्रहके अनुभवी सिपाही, कर्त्तव्यकी पुकारपर, अपना जौहर दिखायेंगे।
[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १८-१-१९१३
३२१. गिरमिट प्रथा
यदि गिरमिट प्रथाकी बुराइयोंको समझने के लिए किसी और प्रमाणकी जरूरत हो तो उसकी पूर्ति कुमारी डडलेके उस पत्रसे हो जायेगी जिसे हम 'इंडिया' से लेकर इसी अंक अन्यत्र उद्धृत कर रहे हैं। इस महिलाने फीजीमें पन्द्रह साल तक मिशनरीका काम किया है, और इस अनुभवके आधारपर उसे कहना पड़ा है कि इस प्रथामें सुधार सम्भव नहीं। पाठकोंसे उनका अनुरोध है कि वे किसी सुधारसे सन्तुष्ट न होकर इस प्रथाके खिलाफ तबतक अपने प्रभावका उपयोग करते रहें जबतक कि उसे समाप्त नहीं कर दिया जाता। हम इस खरे पत्रके लिए कुमारी डडलेके आभारी हैं। ऐसे स्वतन्त्र प्रमाणोंका बड़ा मूल्य होता है। हमें विश्वास है कि इस प्रथाके खिलाफ अन्य यूरोपीय मित्र भी प्रमाण पेश करेंगे, और उसका अन्त, जो प्रायः दृष्टिगोचर होने लगा है, निकट लाने में सहायक सिद्ध हों। हमें विश्वास है, माननीय श्री गोखले इस प्रथाको समाप्त करानेके लिए कृतसंकल्प हैं । अभी पिछले दिनों ही राष्ट्रीय कांग्रेसने इस सम्बन्ध में पुनः एक प्रस्ताव पास किया है। यह प्रस्ताव श्री गोखलेने ही पेश किया था।[१] इस प्रथाकी आड़में स्त्रियों और बच्चोंको गुलामोंकी स्थिति में ढकेल दिया जाता है, और इसके परिणाम इतने भयंकर निकलते हैं कि उनकी चर्चा भी नहीं की जा सकती। जबतक यह स्थिति कायम है तबतक इस अत्यन्त अन्यायपूर्ण, क्रूर एवं अनैतिक प्रथाको पूर्णतः समाप्त कर देनेके लिए हमें आवाज बुलन्द करते रहना है।
[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १८-१-१९१३
- ↑ देखिए "राष्ट्रीय कांग्रेस में श्री गोखले", पृष्ठ ४१८-१९।