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षण: भारतीय गिरमिटिया मजदूरोंके सम्बन्धमें

उन्होंने इस प्रश्नके सम्बन्धमें भारतीयोंको अपने दायित्वोंके महत्त्वसे परिचित कराया था। इस स्थलपर श्री गांधीने श्री गोखले द्वारा वाइसरॉयकी परिषद्म[१] प्रस्तुत किया गया वह प्रस्ताव[२] और उसके सिलसिलेमें दिया गया उनका भाषण पढ़कर सुनायाजिसमें उन्होंने गिरमिटिया प्रथाके सर्वथा उन्मूलनकी माँग की थी। श्री गांधीने उसको विस्तृत टीका भी की। परिषद् के समक्ष प्रस्तुत श्री गोखलेका प्रस्ताव बहुमतसे अस्वीकृत कर दिया गया था, हालाँकि परिषद्के सभी[३] गैर-सरकारी सदस्योंने उसके पक्षमें मतदान किया था। कृपालु तथा सहृदय वाइसरॉय गिरमिटकी इस घृणित प्रथाको भारतीय संविधि-पुस्तिकासे हटानेके लिए चाहे जितना जोर लगाते, पर उसके मार्गमें एक भारी कठिनाई थी―― लॉर्ड हार्डिज द्वारा भेजे दो आयुक्तों――सर्वश्री मैकनील और चिमन-लाल[४]――द्वारा तैयार किया गया प्रतिवेदन, जो दो मोटी-मोटी जिल्दोंमें था। उन्होंने कहा है कि सभी लोग उन जिल्दोंके नीरस पृष्ठोंमें शायद ही सिर खपाना चाहेंगे, लेकिन मेरे लिए वे बड़ा महत्त्व रखते हैं, क्योंकि मैं जानता हूँ कि गिरमिटिया वास्तवमें हैं क्या। पर मैं आपको बतलाता हूँ और आप इसपर विश्वास कीजिए कि प्रतिवेदनमें यह स्वीकार किया गया है कि यदि कुछ शर्तें पूरी की जायें तो गिरमिटिया श्रमको मौजूदा रूपमें ही बरकरार रहना चाहिए। श्री गांधीने कहा कि वे शर्तें ऐसी थीं जिनको पूरा करना असम्भव है और उन दो बड़े-बड़े आयुक्तोंने जो सिफारिशें कीं उनसे पता चलता है कि वास्तवमें पूरी गम्भीरताके साथ उनका यह मतलब नहीं हो सकता कि फीजी, जमैका, गावना तथा अन्य उपनिवेशोंमें मौजूद गिरमिट-प्रथा अपने वर्तमान रूपमें आवश्यकतासे एक मिनट भी अधिक बरकरार रहनी चाहिए। श्री गांधीने यहाँ पिछले आयोगका हवाला देते हुए कहा कि सर्वश्री मैकनील और चिमन-लालने जो त्रुटियाँ बतलाईं वे तो सभी जानते हैं। उनके प्रतिवेदनमें कोई भी नई चीज नहीं मिलती। परन्तु लगभग चालीस वर्ष पूर्व इंग्लैंडकी किसी लोक-कल्याणकारी संस्थाकी ओरसे गैर-सरकारी तौरपर एक जाँच कराई गई थी और उसकी पुस्तिकामें बिना किसी लाग-लपेटके सच्ची-सच्ची बातें बयान की गई थीं। इस प्रथाके अन्तर्गत होनेवाले कष्टोंका उसमें बड़ी जानदार भाषामें खाका खींचा गया था।

इसी सिलसिलेमें श्री गांधीने नेटालके प्रधानमंत्रीके एक वक्तव्यसे उद्धरण दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि गिरमिट-प्रथा बड़ी ही अविवेकपूर्ण प्रथा है और वह जितनी

  1. १. ४ मार्च, १९१२ को।
  2. २. भारत में गिरमिटिया मजदूरोंकी भर्ती बन्द करनेकी सिफारिश करते हुए, देखिए “गिरमिट या गुलामी?”, दिसम्बर १९१५।
  3. ३. जिनकी संख्या २२ थी।
  4. ४. मैकनील और चिमनलालको भारत सरकारने जमैका, ट्रिनीडाट, ब्रिटिश गायना और फीजीके ऐसे उपनिवेशोंकी परिस्थितिके बारेमें प्रतिवेदन तैयार करनेके लिए भेजा था, जहाँ तब भी गिरमिटिया प्रथाकी अनुमति थी। प्रथाकी त्रुटियों और श्रमिकोंकी दयनीय दशांके बावजूद, उन्होंने प्रथा बनाये रखने की सिफारिश की थी।