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भाषण: भारतीय गिरमिटिया मजदूरोंके सम्बन्धमें

है कि ये पुरुष इन स्त्रियोंके साथ विवाह नहीं करते, इनको रखैलकी तरह रखते हैं और इन स्त्रियों में से अनेक वेश्याएँ हैं। श्री गांधीने कहा कि यदि मेरा बस चले तो ऐसे गिरमिटके लिए मैं अपने बच्चोंको देशके बाहर भेजनेसे मना कर दूँ। लेकिन हजारों स्त्री-पुरुष जा ही चुके हैं। भारतके लोग इसके वारेमें क्या सोचते हैं?

प्रतिवेदनमें रखी गई शर्ते ये हैं कि अध्यादेशोंसे सख्त किस्मकी व्यवस्थाओंको निकाल देना चाहिए और संरक्षकको मालिकोंपर नियन्त्रण रखना चाहिए। श्री गांधीने कहा कि जहाँतक इन मजदूरोंके संरक्षणके लिए बनाये गये विनियमोंका प्रश्न है, आप मेरी बातका यकीन करें कि उनमें कई बड़ी-बड़ी खामियाँ हैं, ऐसी कि उनका लाभ उठाकर उन विनियमोंकी व्यवस्थाओंको निष्फल बनाया जा सकता है। नियमोंका उद्देश्य मालिकोंको सभी प्रकारकी शक्तियोंसे सज्जित करना है। पूँजी श्रमके खिलाफ खड़ी हुई है और कृत्रिम रूपसे पूँजीको सहारा दिया जा रहा है, श्रमको नहीं।

श्री गांधीने भारतसे प्रवास करनेवालोंके संरक्षकोंकी भर्त्सना करते हुए कहा कि वे भी मालिकोंके ही वर्गके लोग हैं; और उन्हीं उठते-बैठते हैं। तब क्या यह स्वाभाविक नहीं कि उनकी सहानुभूति मालिकोंके साथ ही रहे?और तब यह कैसे मुमकिन है कि वे मालिकोंके मुकाबिले मजदूरोंके साथ न्याय कर सकें? मेरे सामने ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं कि जब मजिस्ट्रेटोंने गिरमिटिया मजदूरोंके साथ न्याय किया है, परन्तु ‘प्रवासियोंके संरक्षकों’ से ऐसी आशा करना असम्भव है। मजदूरोंको तो बिलकुल हाथ-पैर बाँध कर मालिकोंके हवाले कर दिया गया है। यदि वे अपने मालिकके खिलाफ कोई अपराध करें तो उनको सबसे पहले तो जेल भुगतनी पड़ती है और वे जितने दिन जेल काटते हैं उनकी गिरमिटको अवधिमें उतने दिन बढ़ा दिये जाते हैं और उनको फिरसे मालिकोंके यहाँ काम करने भेज दिया जाता है। आयुक्तोंने इन नियमों के विरुद्ध कुछ भी नहीं कहा। यदि ‘संरक्षक’ कोई गलत फैसला दे तो उसे कोई गलत नहीं कह सकता, परन्तु यदि मजिस्ट्रेट वैसा करे तो उसकी लोचना की जा सकती है। और आयुक्तोंने कहा है कि इन कैदियोंको अलग-अलग जेलोंमें रखा जाना चाहिए। परन्तु यदि इन सैकड़ों कैदियोंके लिए अलग-अलग जेल बनाये जायें तो औपनिवेशिक सरकारका दिवाला पिट जायेगा। सत्याग्रहियोंके लिए वह जेल नहीं बना पाई थी। और आयुक्तोंने यह भी कहा है कि गिरमिटिया मजदूरोंको एक निश्चित रकम किस्तोंमें अदा करने पर गिरमिटसे मुक्त होनेकी अनुमति दी जानी चाहिए। परन्तु उन्होंने तो ऐसा समझा जैसे गिरमिटिया एक स्वतन्त्र व्यक्ति हो। गिरमिटिया खुद-मुस्तार तो होता नहीं है। मैं ऐसी कई सुशिक्षित अंग्रेज लड़कियोंको जानता हूँ जिनको प्रलोभन देकर लाया गया था और जो गिरमिटिया न होनेपर भी अपने-आपको इस चक्करसे छुड़ा नहीं पाईं। तब फिर गिरमिटिया अपने-आपको कैसे स्वतन्त्र कर सकता है? आयुक्तोंने आगे कहा है कि भारतीयोंके बच्चोंके लिए प्राथमिक शिक्षाकी व्यवस्था करनेके सिलसिलेमें पैदा हुई विशेष आवश्यकताओंकी ओर ध्यान दिया जाना चाहिए।