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१४४. पत्र: वा० गो० देसाईको

सवेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी
गिरगाँव
[बम्बई]
मंगलवार, दिसम्बर २१, १९१५

भाई श्री वालजी गोविन्दजी,

आपको आज तार[१] दिया था, मिला होगा। यहाँ आनेपर मालूम हुआ कि प्रत्येक सरकारी नौकर अपने अधिकारीकी अनुमति लेकर चला जा सकता है। इस तरहकी अनुमति लेना उचित लगता है। यदि अनुमति न दी जाये तो त्यागपत्र देना ठीक होगा। मैंने तारमें कहा है कि त्यागपत्र वापस ले लें। किन्तु वास्तवमें तो आपका पत्र त्यागपत्र माना ही नहीं गया है। फिर भी ऐसा लगता है कि नई स्थितिकी चर्चा रासनसे अवश्य करनी चाहिए।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५६८३) से।

सौजन्य: वालजी गोविन्दजी देसाई

 

१४५. भाषण: ११ वें भारतीय औद्योगिक सम्मेलनमें[२]

दिसम्बर २४, १९१५

श्री गांधीने प्रस्तावका[३]समर्थन करते हुए कहा: यदि हमारे देशके उद्योगों में काम करनेवाले लोग देशसे चले जायें और यदि कभी लौटें भी तो अत्यन्त दुर्बल और नीतिभ्रष्ट होकर, तो हम अपने उद्योगोंको कायम नहीं रख सकते। “हानिकर” और “अनैतिक” शब्द यों ही ऊटपटाँग नहीं चुन लिये गये हैं, बल्कि उनपर हमारे स्वर्गीय

  1. १. देखिए “तार: वा० गो० देसाईको”, २१-१२-१९१५।
  2. २. सम्मेलन बम्बईमें हुआ था; इसके अध्यक्ष सर दोराबजी ताता और स्वागताध्यक्ष सर पेटिट थे।
  3. ३. प्रस्ताव इस प्रकार था: वाइसराय महोदय लॉर्ड हार्डिजने भारतसे बाहरके भारतीय मजदूरोंके लिए जो कुछ किया है और भारत-मन्त्री से इसको [गिरमिट प्रथाको] रद करनेकी जो सिफारिश की है। उसके लिए यह सम्मेलन उन्हें सादर धन्यवाद देता है और निवेदन करता है कि देशके अधिकतम हितकी दृष्टिसे भारत से गिरमिटपर मजदूर ले जानेकी प्रथा अवांच्छनीय है। सम्मेलन यह भी अनुरोध करता है। कि इसके अत्यन्त हानिकर और अनैतिक प्रभावोंको ध्यानमें रखते हुए यह प्रथा यथासम्भव शीघ्र समाप्त कर दी जाये।