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श्रीमती बेसेंटको उत्तर

हो, तो वह मनपर यह गलत छाप लेकर जाता कि भारत संसारके सर्वाधिक सम्पन्न देशोंमें से एक है; क्योंकि उस दिन हमारे सरदार-सामन्तोंने ऐसे ही बहुमूल्य आभूषण धारण कर रखे थे। और मैंने महाराजाओं तथा राजाओंकी ओर मुड़कर विनोदपूर्वक कहा कि आप लोगोंके लिए यह आवश्यक है कि जबतक हम लोग अपने आदशको सिद्ध न कर लें तबतक आप लोग इस सम्पत्तिको जातिकी थाती समझकर अपने पास रखें; और मैंने उन जापानी सामन्तोंके कार्यका उदाहरण दिया;[१] जिन्होंने आवश्यकता न होनेपर भी अपनी सम्पत्ति और उन जमींदारियोंका परित्याग कर देनेमें अपना परम सौभाग्य माना, जो उनके वंशमें पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही थीं। इसके उपरान्त मैंने श्रोताओंसे अनुरोध किया कि आप जरा इस अप्रतिष्ठाजनक वातपर विचार कीजिए कि जब वाइसरॉय महोदय हमारे पूज्य अतिथि हों, तब हम लोगोंसे ही उनकी सुरक्षाका प्रबन्ध किया जाये। और मैं यह दिखलानेका प्रयत्न कर रहा था कि इस एहतियाती कार्रवाईके लिए भी दोषी हम ही हैं; क्योंकि इसकी आवश्यकता इसीलिए हुई कि भारतमें संगठित रूपसे राज-पुरुषोंकी हत्याओंकी प्रणाली शुरू हो गई है। इस प्रकार एक ओर मैं यह दिखलानेका प्रयत्न कर रहा था कि विद्यार्थी किस प्रकार समाजको उसके जाने-माने दोषोंसे मुक्त करानेके लाभदायक कार्यमें सहायक सिद्ध हो सकते हैं और दूसरी ओर उन्हें हिंसात्मक तरीकोंके विचार तक से दूर रहनेके लिए समझा रहा था।

मुझे बीस वर्षके सार्वजनिक जीवनका अनुभव है और इस बीच मैंने बीसियों बार बड़े ही अशान्त और क्षुब्ध श्रोताओंके सामने व्याख्यान दिये हैं। अतः मैं दावा कर सकता हूँ कि मुझे अपने श्रोताओंकी नब्ज पहचाननेका कुछ अनुभव है। मैं ध्यानपूर्वक यह देखता जा रहा था कि मेरे व्याख्यानके प्रति लोगोंकी क्या प्रतिक्रिया है; और निश्चय ही मैंने यह नहीं देखा कि विद्यार्थियोंपर उसका कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। सच तो यह है कि दूसरे दिन सबेरे उनमें से कुछ लोगोंने मुझसे आकर कहा कि वे मेरी बातोंको पूरी तरह समझ गये थे और उनका उनपर काफी प्रभाव पड़ा था। उनमें से एक बड़ा तार्किक था। उसने तो मुझसे जिरह ही कर डाली। किन्तु जब मैंने अपने भाषणके दौरान जो तर्क पेश किये थे, उन तर्कोंपर और भी प्रकाश डाला तो वह उनसे कायल प्रतीत हुआ। मैंने समस्त दक्षिण-आफ्रिका, इंग्लैण्ड तथा भारतवर्ष में हजारों विद्यार्थियों और अपने अन्य देशभाइयोंके सामने भाषण किये हैं; और मैं दावा करता हूँ कि उस दिन सन्ध्याके समय लोगोंके सामने मैंने जो तर्क उपस्थित किये थे उन्हीं तर्कोंके आधारपर मैंने बहुत-से लोगोंको अराजकतावादी तरीकोंके समर्थनसे विमुख किया है।

और अब अन्तमें बम्बईके श्री एस० एस० सेटलूरकी बात लीजिए। उन्होंने भी ‘हिन्दू’ में उस घटनाके सम्बन्धमें लिखा है और उनका रुख भी मेरे प्रति कोई मैत्रीपूर्ण नहीं है। मेरा खयाल है उन्होंने कई बातोंमें अनुचित रूपमें, मेरी धज्जियाँ उड़ा देनेका प्रयत्न किया है। श्री सेटलूरने सभाकी पूरी कार्रवाई अपनी आँखोंसे देखी थी। किन्तु, मैं देखता हूँ कि उसका जो विवरण वे देते हैं, वह श्रीमती बेसेंटके विवरणसे भिन्न है।

  1. १. भाषण के उपलब्ध विवरणमें यह उदाहरण नहीं मिलता है।