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भाषण: हैदराबाद, सिन्धमें

 

उन्होंने कहा: मेरे राजनैतिक गुरु स्वर्गीय श्री गोखलेने मुझे एक वर्ष तक केवल घूमकर देशको स्थितिका अध्ययन करनेको कहा था और व्याख्यान आदि न देनेकी हिदायत दी थी। वह एक वर्ष पूरा हो चुका है और अब में बोल सकता हूँ। आज-कल भारतके लिए स्वराज्यको चर्चाका जोर है। इलाहाबादमें कांग्रेस और (मुस्लिम) लीगके नेतागण उसकी योजना करने जा रहे हैं। परन्तु ऐसे कितने व्यक्ति हैं जो यह जानते हैं कि जरूरत किस चीजकी है? बटन दबाते ही स्वराज्य न तो दिया जा सकता है और न लिया ही जा सकता है। हम स्वराज्यके लिए जिस हद तक अपनेको तैयार करें उसी हद तक पा सकेंगे। हमें कुछ शर्तें पूरी करनी हैं; हम उन्हें पूरा कर सकते हैं। उनमें से एक शर्त यह है कि हम हृदयसे स्वदेशी अपनायें। स्वराज्य और स्वदेशीका चोली-दामनका साथ है। दूसरे, हमारा नीति-मन्त्र यह होना चाहिए――“मनुष्यसे नहीं ईश्वरसे डरो, फिर वह मनुष्य चाहे राजा हो, चाहे पुरोहित, चाहे मौलवी।” फिर, हमें चाहिए कि हम अपने दलित और निर्धन वर्गके लोगोंको मनुष्य समझें। श्री गांधीने श्रोताओंको याद दिलाते हुए कहा: “हम अपने नेताओंको जिन सद्गुणोंसे विभूषित मानते हैं उनको अपने जीवनमें उतारना ही उनका समुचित आदर करना है।” तदुपरांत श्री गांधीने श्रोताओंसे भारत सेवक समाज (सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी) के लिए चन्दा एकत्रित करने को कहा।

उनका भाषण समाप्त होनेपर लोगोंने उत्साहपूर्वक तालियाँ बजाई। अन्तमें ‘वन्देमातरम्’ तथा प्रख्यात संगीताचार्य विष्णु दिगम्बरका[१] एक राष्ट्रीय गीत हुआ। श्रोताओंने खड़े होकर गीत सुने।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २९-२-१९१६
 

१८०. भाषण: हैदराबाद, सिंधमें

फरवरी २७, १९१६

२७ फरवरी, १९१६को हैदराबाद (सिन्ध) के होम्स्टैंड हॉलमें एकत्रित विशाल जन-समूहके समक्ष श्री गांधीने स्व० श्री गोखलेके चित्रका अनावरण किया। उपस्थित व्यक्तियों में [हैदराबादके] जिलाधीश भी थे।

श्री गांधीने अपना भाषण हिन्दुस्तानीमें दिया। वे बोले, "श्री गोखलेके महान्का र्य और उनकी सफलताका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आधार उनका चरित्रबल था। यदि उद्देश्य स्वार्थ-परायणता अथवा सत्ता न होकर कर्त्तव्य-परायणता हो तो सार्वजनिक कार्यकर्ता ही नहीं, वरन् शासनके अधिकारीगण, व्यापारी लोग, दफ्तरोंके बाबू, मेहनत मजदूरी करनेवाले कुली, इत्यादि भी देशका उत्थान और उसकी सेवा कर सकते हैं।

  1. १. विष्णु दिगम्बर पलुस्कर (१८७२-१९३१); प्रसिद्ध गायक तथा गांधर्व महाविद्यालय के संस्थापक।