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भाषण: कराचीमें नागरिकों द्वारा दिये गये मानपत्रके उत्तरमें

सच है कि वे सब लोग जिन्हें यह रोग हो जाता है, मर हो जाते हैं। लोग टीका लगवायें या न लगवायें यह उनकी मर्जीकी बात है। परन्तु यदि किसी जगह टीका लगवाना कानूनन अनिवार्य बना दिया जाये और यदि कोई व्यक्ति धर्म-सम्बन्धी कारणों-से टीका न लगवाना चाहे, तो उसका साथ प्रत्येक भारतीयको देना चाहिए क्योंकि किसी एक बातके बारेमें हुक्म मानना अनिवार्य हो जाये तो दूसरी बातके विषयमें भी अनिवार्य रूपसे हुक्म मानना पड़ेगा।[१]

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे सीक्रेट एब्स्ट्रैक्ट्समें उद्धृत १-३-१९१६ के ‘सिंध जरनल’के उद्धृरणसे।
 

१८२. भाषण: कराचीमें नागरिकों द्वारा दिये गये मानपत्रके उत्तरमें[२]

फरवरी २९, १९१६

मैं भारतके विभिन्न हिस्सोंमें घूम रहा हूँ। अपनी इस यात्राके दौरान मैंने सारे भारतमें सभी जगहोंपर अपने प्रति लोगोंका विशेष स्नेह देखा। सभी मतों और जातियोंके भाई मुझपर अपना अनुराग जाहिर करते हैं। लेकिन मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यह असाधारण स्नेह मेरे प्रति न होकर दक्षिण आफ्रिकामें हमारे उन सब शानदार भाई-बहनोंके प्रति उचित श्रद्धांजलि है जिन्होंने मातृभूमिकी सेवा करते हुए जबरदस्त कष्ट उठाये, बलिदान किये और जेल तक गये। निःसन्देह आपकी मेरे प्रति इतनी ममता इसी विचारके कारण है। उन्होंने लड़ाई जीती और ‘करो या मरो’ के उन्हींके दृढ़ संकल्पके कारण इतनी सफलता मिली। इसलिए मैं मानता हूँ, मेरी तारीफ में जो कुछ भी कहा जाता है वह वास्तवमें उनकी तारीफ है।

भारतके अपने दौरेके दरम्यान एक बातसे मैं बहुत प्रभावित हुआ और वह है भारतीय जनताका जागरण। लोगोंके मन एक नई आशासे भर गये हैं; उन्हें लगता है कि ऐसी कोई बात होने जा रही है जिससे भारत माताका सिर ऊँचा हो जायेगा। आशाकी इस भावनाके साथ-साथ मैंने यह भी देखा कि लोगोंमें केवल सरकारका ही नहीं, जातियोंके सरपंचों और पुरोहितोंका डर भी फैला हुआ है। नतीजा यह है कि हमारे मनमें जो कुछ है हम उसे जाहिर नहीं कर पाते। जबतक भयकी यह

  1. १. बॉम्बे क्रॉनिकल १-३-१९१६ में ये पंक्तियाँ प्रकाशित हुई थीं: “श्री गांधीने कहा कि जिन लोगोंको टीका लगवानेके विरुद्ध धर्म-सम्बन्धी एतराज हो उन्हें सत्याग्रह करना उचित है। और जो लोग इस सम्बन्ध में जेल जानेको तैयार हैं, जनता उनकी मदद करे।”
  2. २. फरवरी २९, १९१६ को कराची में नागरिक संघने गांधीजीका अभिनन्दन किया था; उस अवसरपर गांधीजीने हिन्दीमें जो भाषण दिया यह उसके अंग्रेजी रूपान्तरका अनुवाद है। मूल हिन्दी अप्राप्य है।