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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। सरकारी अधिकारियोंको तुच्छसे कारणोंको लेकर लोगोंके अपने विचार प्रकट करनेके अधिकारपर नियन्त्रण नहीं करना चाहिए। (तालियाँ)। नियन्त्रण लगानेका अर्थ होता है लोगोंको मिथ्या या भ्रामक विचारोंमें आसक्त होनेके लिए प्रोत्साहन देना। इससे लोग मेरी सरकारके शत्रु बनते हैं। (हँसी)। मेरी सच्ची भावनाएँ दबाई जाती हैं; मैं उन्हें स्वतन्त्रतापूर्वक व्यक्त नहीं कर सकता। मैं जो-कुछ अनुभव करता हूँ उससे उलटा लिखता हूँ। ऐसे कानूनोंके कारण हमारे देशके ३० करोड़ लोगोंका हमारे शासकोंके प्रति विशुद्ध प्रेम नहीं हो सकता। भारतमें शुद्ध न्याय किया जाना चाहिए। (तालियाँ)। सरकार हमारे लिए न्यासी या संरक्षक-रूप है। सच कहूँ तो मुझे ‘न्यासी’ शब्द पसन्द नहीं है। भारतकी अवस्था अब बचपनकी अवस्था नहीं है, इसलिए उसे न्यासी या संरक्षककी आवश्यकता नहीं है। भारत संसारका एक प्राचीनतम देश। वह एक अत्यन्त अनुभव-सम्पन्न देश है। क्या भारतके लोगोंके लिए यह कहना उचित है कि वे अनुभव-शून्य हैं या बचपनकी अवस्थामें हैं? नहीं। हम भारतीयोंको संरक्षककी आवश्यकता नहीं है। हमारे लिए तो उतना ही आवश्यक है कि सरकार हमें शुद्ध न्याय दे। हम भारतीय लोग जिस तरह धूर्ततापूर्ण कार्यवाहियोंसे मुक्त हैं, विचारोंमें भी उतने ही उदार हैं। हम निराश जरूर हैं। किन्तु हम अराजभक्तिका अपराध कभी न करेंगे। इन स्थितियों में सरकारसे प्रार्थना करता हूँ कि जो-कुछ उचित और न्यायसंगत हो, वह सब किया जाये। यदि वह ऐसा करेगी तो इन सभाओंकी कोई आवश्यकता न रहेगी। (तालियाँ और हँसी)। यह तो मेरी सर्व सामान्य प्रार्थना हुई है। समाचारपत्रोंके लेखकोंकी ओरसे मेरी सरकारसे विशेष प्रार्थना है कि “सम्भ्रान्त सम्पादकों और पत्र-स्वामियोंको तंग न किया जाये।” में यह भी कहता हूँ: “हमसे वैसा ही उदारतापूर्ण व्यवहार कीजिएगा जैसा आप इंग्लैंडके लोगोंसे करते हैं। हम भारतीय मक्कारोंकी कौम नहीं हैं।” (हँसी)। हम शिक्षित, शिष्ट और सभ्य लोग हैं”। (तालियाँ)। मैं अपने समाचारपत्रोंके लेखक बन्धुओंसे कहता हूँ, “जो कुछ आपको कहना है, खुल्लमखुल्ला कहिए”। (तालियाँ)। यह हमारा कर्त्तव्य है। हमें अपने ऊपर निर्भर रहना चाहिए और अपने कष्टोंके बारे में खूब लिखना चाहिए। किन्तु हमें यह न भूल जाना चाहिए कि हमें यह कार्य शिष्टता और संयमकी मर्यादाओंके भीतर रहकर करना है। जब कभी हमारे सम्मुख राजनैतिक संकट आये, तब हम जो-कुछ अनुभव करते हैं और कहना चाहते हैं उसे यथा-सम्भव स्पष्ट शब्दोंमें कहने से हमें कदापि न झिझकना चाहिए। (तालियाँ)। इस प्रकार साफ बात कहने और अपने कार्यका समर्थन सचाईसे करनेपर यदि सरकार हमें दण्ड दे तो ठीक है, उसे दण्ड देने दीजिए। (तालियाँ और हँसी)। यदि परिणाम अधिकसे-अधिक खराब हो तो भी आप क्या कर सकते हैं? ज्यादासे-ज्यादा यह होगा कि वे हमारे शरीरोंको लेंगे। (हँसी)। बहुत अच्छा, यदि वे हमारे शरीरोंको ले लेंगे तो हमारी आत्माएँ मुक्त हो जायेंगी। (तालियाँ और जोरकी हँसी)।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे सीक्रेट एब्स्ट्रैक्ट्स, १९१६, पृष्ठ ५०६