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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सामने रखनेका प्रयास किया है सो कदापि न करता। मेरी धारणा है कि आर्थिक उन्नति, उस अर्थमें जिसमें उसे मैंने आपके समक्ष रखा है, वास्तविक उन्नतिके विरुद्ध पड़ती है। यही कारण है कि हमारा प्राचीन आदर्श धनसम्पत्तिमें वृद्धि करनेवाली गतिविधियोंपर नियन्त्रण रखना रहा है। इससे भौतिक समृद्धिको आकांक्षा समाप्त हो जाती हो, सो बात नहीं है। हमारे मध्य जैसा कि सदासे होता आया है अब भी ऐसे व्यक्ति पैदा होते रहेंगे जिन्होंने अपने जीवनका लक्ष्य धन अर्जित करना ही बना रखा है। परन्तु हमारा सदासे ही यह विचार रहा है कि धनोपार्जनको लक्ष्य बना लेना आदर्शसे गिर जाना है। आपको यह जानकर आनन्द होगा कि हममें से सबसे अधिक धनवान व्यक्तियोंने प्रायः यह अनुभव किया है कि यदि हमने स्वेच्छासे निर्धनता अपनाई होती तो वह स्थिति हमारे लिए उच्चतर होती। परमेश्वर और माया दोनोंको एक साथ नहीं साधा जा सकता। यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण आर्थिक सत्य है। हमें इन दोनोंमें से एकको चुन लेना है। आज पाश्चात्य देश भौतिकवाद रूपी राक्षसके पाँवों तले पड़े हुए कराह रहे हैं। उनकी नैतिक उन्नतिको जैसे लकवा मार गया है; वे अपनी उन्नतिका मापदण्ड रुपया, आना, पाई बनाये हुए हैं। अमेरिकाकी दौलत उनका मानदण्ड बनी हुई है। अन्य राष्ट्र उसीके समान धनाढ्य बननेकी इच्छा रखने लगे हैं। मैंने अपने अनेक देशवासियोंको यह कहते सुना है कि हम अमेरिकाकी तरह धनवान तो होना पसन्द करेंगे परन्तु उसके तरीके न अपनायेंगे। मेरा नम्र निवेदन है कि यदि इस प्रकारका प्रयास किया गया तो वह असफल हुए बिना न रहेगा। हम एक ही समयमें “बुद्धिमान, संयमशील और क्रूर” नहीं हो सकते। मैं अपने नेताओंसे इस बातकी अपेक्षा करूंगा कि वे हमें संसार-भरमें सबसे अधिक नीतिमान् बनना सिखायें। हमें बताया गया है कि हमारे इस देशमें किसी समय देवता निवास करते थे। जिस देशको मिलोंकी चिमनियोंसे निकलनेवाला धुंआँ और कारखानोंका कर्कश स्वर भयजनक बनाये हुए है, जिसकी सड़कोंपर मुसाफिरोंसे खचाखच भरी असंख्य मोटरगाड़ियाँ तेजीके साथ इधरसे-उधर दौड़ रही हैं और जिसकी इन मोटरगाड़ियोंमें लक्ष्यको भूले हुए ऐसे यात्री सवार हैं, जो प्रायः भ्रांतचित्त रहा करते हैं और जिन्हें उन वाहनोंमें भेड़-बकरीकी तरह भर दिये जानेके कारण तथा बिलकुल अपरिचित, असहिष्णु, विद्वेषपूर्ण व्यक्तियोंके साथ――जो यदि उनका बस चले तो परस्पर एक-दूसरेको निकाल बाहर करते――यात्रा करनेके लिए विवश होनेके कारण अपना होश नहीं रहता, उस देशमें देवताओंका निवास असंभव है। मैं इन बातोंका जिक्र इसलिए कर रहा हूँ कि ये भौतिक उन्नतिकी प्रतीक मानी जाती हैं। परन्तु इनसे हमारी सुख-समृद्धिमें किंचित्भी वृद्धि नहीं होती। महान् वैज्ञानिक वैलेस अपने सुचिन्तित विचार इन शब्दों में व्यक्त करते हैं:

अतीत-कालसे चला आनेवाला साहित्य जो हमें आज उपलब्ध है उससे स्पष्टतः प्रकट होता है कि आज जो सामान्य नैतिक विचार और धारणाएँ, नैतिकताका सर्वस्वीकृत मानदण्ड और इनसे उत्पन्न होनेवाला जो पारस्परिक व्यवहार देखनमें आता है वह आजकी अपेक्षा प्राचीन कालमें किसी प्रकार भी कम न था।