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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सकेंगे। यदि हम ब्रिटेनकी नकल इसलिए करते हैं कि हमारा शासक-वर्ग वहाँका है तो हमारी और उन दोनोंकी अवनति होगी। हमें आदर्शोंसे अथवा आदर्शोंको पूर्णतया कार्यान्वित करनेसे भयभीत नहीं होना चाहिए। हमारा राष्ट्र सच्चे अर्थमें आध्यात्मिक राष्ट्र उसी दिन होगा जब हमारे पास सोनेकी अपेक्षा सत्यका भण्डार अधिक होगा, धन और शक्तिके प्रदर्शनकी अपेक्षा निर्भयता अधिक होगी और अपने प्रति प्रेमकी अपेक्षा दूसरोंके प्रति उदारता अधिक होगी। यदि हम केवल इतना ही करें कि अपने घरों, मुहल्लों और मन्दिरोंमें धनके आडम्बरका प्रवेश न होने देकर नैतिकताका वातावरण पैदा करें तो हम भारी रणसज्जाका बोझ उठाये बिना शत्रुसे, वह चाहे जितना भीषण क्यों न हो, निपट सकते हैं। हमें सर्वप्रथम दैवी सम्पद्की, परमपिताके राज्य और उसकी पवित्रताकी कामना करनी चाहिए। जो ऐसा करेगा उसे यह अमोघ वचन मिला हुआ है कि उसके पास सब वस्तुएँ आ जायेंगी। सच्चा अर्थशास्त्र यही है। ईश्वर करे हम और आप दैवी सम्पद्का संचय करें और अपने जीवनमें उसे उतारें।

इसके अनन्तर गांधीजीसे कुछ प्रश्न पूछे गये――प्रोफेसर जेवन्सने कहा: समाजके लिए अर्थशास्त्रियोंका रहना आवश्यक है। [समाजका] लक्ष्य क्या होना चाहिए इसे निर्धारित करना उनका काम नहीं है। यह काम दार्शनिकोंका है।
प्रोफेसर गिडवानीने जो कि म्योर कालिज इकॉनमिक सोसाइटीके अध्यक्ष थे श्री गांधीको धन्यवाद दिया।
प्रोफेसर हिगिनबॉटमने कहा कि ऐसा कोई भी आर्थिक प्रश्न नहीं है जिसे नैतिक प्रश्नसे अलग किया जा सके।
श्री गांधीने प्रो० जेवन्सके कथनके सम्बन्धमें अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा:

कूड़ा-करकट गलत जगहमें रखे हुए पदार्थके सिवा और कुछ नहीं है ऐसा कहा जाता है। इसी प्रकार जब कोई अर्थशास्त्री गलत जगहपर आ बैठता है तब वह हानिप्रद बन जाता है। जिस प्रयोजनके लिए उसकी सृष्टि हुई है यदि अर्थशास्त्री अपने उसी क्षेत्रमें रहे तो मैं यह मानता हूँ कि प्रकृतिकी व्यवस्थामें अर्थशास्त्रीका भी स्थान है। यदि कोई अर्थशास्त्री ईश्वरके बनाये नियमोंकी खोजबीन नहीं करता और निर्धनता-निवारणको लक्ष्य मानकर सम्पत्ति कैसे बाँटी जाये, हमें यह नहीं बताता, तो उसने भारतभूमिपर नाहक ही जन्म लिया है। मैं एक और बात अर्थशास्त्रके विद्यार्थियों तथा अध्यापकोंके विचारार्थ रखना चाहता हूँ, वह यह है कि जो बात इंग्लैंड और अमेरिकाके लिए अच्छी हो सकती है, यह जरूरी नहीं कि वह भारतके लिए भी अच्छी ही हो। मेरा विचार तो यह है कि नैतिक सिद्धान्तोंसे संगति रखनेवाले अर्थशास्त्र सम्बन्धी अधिकांश सिद्धान्त सब जगह समान रूपसे लागू किये जा सकते हैं। किन्तु अलग-अलग क्षेत्रों में उनके विनियोगमें थोड़ा-बहुत अन्तर तो करना ही होगा। इसलिए मैं चेतावनी देना चाहता हूँ कि चूँकि भारतीय परिस्थिति कुछ बातोंमें अमेरिका और इंग्लैंडकी परिस्थितिसे बहुत भिन्न है, अर्थशास्त्रियोंको चाहिए कि वे अपने सामने आनेवाली बातोंपर