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पत्र: कल्याणजी मेहताको

सलाह लेना और अपने भाइयोंसे भी विचार-विमर्श करना। कुछ अधिक जानना चाहो तो पत्र लिखकर पूछना अथवा किसी रविवारको चले आना। अब अधिक नहीं लिखता।

हरखचन्दसे फिर मिलनेका प्रयत्न करना। डॉक्टरको स्पष्ट उत्तर मिलना ही चाहिए। कृष्णो[१] और काशी[२] यहीं हैं। छगनलालने उक्त कार्यमें (वेतन लेकर) सम्मिलित होनेका विचार किया है। वह इसी उद्देश्यसे मोतीचन्दकी अनुमति लेने बड़ौदा गया है। लेकिन, उसने लिखा है कि मोतीचन्दने उसपर बड़ा दबाव डाला है। देखना है, अब वह क्या करता है।

मणिलाल और रामदास कुछ ही दिनोंमें नेटाल जाकर प्रागजीको मुक्त कर देंगे।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५६९१) से।

सौजन्य: नारणदास गांधी

२४१. पत्र: कल्याणजी मेहताको

अहमदाबाद पौष बदी १० [जनवरी १८, १९१७][३]

भाई श्री कल्याणजी,

मैं आपको अपनी अन्य कठिनाई भी बता रहा हूँ। मैं इन दिनों शिक्षाके सम्बन्ध में एक भारी योजना[४] तैयार कर रहा हूँ। उसीमें मेरा सारा समय लग जाता है। बहुत से लोगोंसे मिलना और विचार-विमर्श करना होता है। इस कामको चार-पाँच दिनके लिए मुल्तवी कर दूँ या जारी रखूँ; इस कामको करते रहना अधिक लाभप्रद है या आपके सम्मेलनमें आना――पहले इन सब प्रश्नोंका उत्तर दें और फिर मुझपर आनेके लिए दबाव डालें।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (जी० एन० २६६८) की फोटो-नकलसे।

 
  1. १. छगनलाल गांधीका पुत्र कृष्णदास।
  2. २. छगनलाल गांधीकी पत्नी।
  3. ३. यह पत्र १७ जनवरी १९१७ को कल्याणजी मेहताके नाम लिखे पत्रके बाद लिखा गया जान पड़ता है।
  4. ४. देखिए अगला शीर्षक।