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२५२. भाषण: गोधराम, गोखलेकी बरसीके अवसरपर

फरवरी १९, १९१७

गोखलेकी बरसीके सम्बन्धमें १९ फरवरी, १९१७ को गोधरामें एक विशाल सार्वजनिक सभा हुई जिसकी अध्यक्षता गांधीजीने की। सभामें प्रस्ताव रखा गया था कि एक ऐसी समिति नियुक्त की जाये जो गोखलेके अति प्रिय जिलेमें शिक्षाका प्रसार करके उनकी स्मृतिको कायम रखने के लिए कदम उठाये।

प्रस्तावके अनुमोदन तथा उसके पास होनेके बाद श्री गांधीने अध्यक्षीय भाषण दिया। सबसे पहला मुद्दा जो उन्होंने लिया वह था श्री गोखलेकी धार्मिक सहिष्णुता। उन्होंने कहा कि एक बार श्री गोखलेने एक ऐसे बनावटी ‘साधु’को खूब डाँटा जो हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच भेदभावकी गहरी खाई खोदना चाहता था। उन्होंने कहा देशमें सर्वत्र धार्मिक विश्वास तेजीसे क्षीण होते जा रहे हैं, किन्तु इस समय एक हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच भेदभावकी गहरी खाई खोदना चाहता था। उन्होंने कहा देशमें सर्वत्र धार्मिक विश्वास तेजीसे क्षीण होते जा रहे हैं, किन्तु इस समय एक अन्य धर्म प्रगति कर रहा है और वह है देश-प्रेम। श्री गोखलेने अपने भीतर इस धर्मको उच्चतम स्तर तक विकसित किया था; यहाँ तक कि उन्होंने अपना जीवन मातृभूमिकी सेवामें समर्पित कर दिया था।

श्री गांधीने अपने अनुपम तथा प्रभावशाली ढंगसे श्री गोखलेके सत्य, प्रेम और निर्भीकताके गुणोंका वर्णन किया। उन्होंने कहा कि इन गुणोंके साथ देश-भक्ति भीहोनी चाहिए। जहाँ बहुतसे लोग केवल उन्हीं विचारोंको व्यक्त करते हैं जो श्रोताओंके लिए रुचिकर होते हैं, वहाँ गोखले सदैव अपने परिपक्व अध्ययन तथा चिन्तनसे परिष्कृत विचार जनता तथा अधिकारियोंके सामने रखते थे।

श्री गांधीने छोटे-बड़े सभी अधिकारियोंको श्री गोखलेके जीवनसे शिक्षा ग्रहण करनेकी सलाह देते हुए कहा कि वे यद्यपि शाही विधान परिषद् (इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल) के सदस्य होनेके नाते जीवनमें उच्च स्थान प्राप्त कर चुके थे, फिर भी वे अपने देशवासियोंके प्रति सदैव सदय और उदार थे। उन्होंने कहा कि जवान और बूढ़े हजारों लोगोंमें व्याप्त देशभक्तिकी भावना, सत्य और निर्भयता-जैसे उत्कृष्ट गुणोंके अभावमें, गंगाके उस प्रवाहकी तरह नष्ट हुई जा रही है जो हिमालयसे निकलकर बंगालको खाड़ी तक बहता जा रहा है।

अन्तमें श्री गांधीने नगरके लोगोंसे अनुरोध किया कि वे उत्साहके साथ उस समितिकी सहायता करें जो जिलेमें शिक्षाके विकासके लिए नियुक्त की गई है। इसके बाद उन्होंने उन सब लोगोंको धन्यवाद दिया जिन्होंने उनका नगरमें इतना भव्य और हार्दिक स्वागत किया था।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २३-२-१९१७