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२५४. भाषण: सूरतमें गिरमिट-प्रथापर[१]

फरवरी २६, १९१७

बहनो और भाइयो,

मैं अहमदाबादका निवासी हूँ और इसलिए साधारणतः सूरतकी शहरी व्यवस्थाकी जानकारी मुझे नहीं हो सकती। मैं जब यहाँ आया तब मुझसे इस सभाका अध्यक्ष-पद ग्रहण करनेको कहा गया। मैं यह सुनकर सोचमें पड़ गया और मुझे अपनी अयोग्यपद ग्रहण करनेको कहा गया। मैं यह सुनकर सोचमें पड़ गया और मुझे अपनी अयोग्यताका भी विचार हुआ। इस शहरकी नागरिक स्थितिका मुझे कोई ज्ञान नहीं है, इसलिए मैंने स्थानीय भाइयोंकी सलाहको मानक कहा कि मेरे अध्यक्ष होनेसे यदि आपका कार्य अच्छी तरह सम्पन्न हो सके तो मेरा नाम पेश करें। मैं अपना उत्तरदायित्त्व भली-भाँति समझता हूँ। अलबत्ता यह नहीं कहा जा सकता कि यहाँ जिन विषयोंकी चर्चा होती है और जो प्रस्ताव आप लोग पास करनेवाले हैं उनके लिए मैं तैयार होकर आया हूँ। इस दृष्टिसे मैं इस पदके अयोग्य हूँ। इसलिए भाइयो और बहनो! मेरी प्रार्थना है कि मेरी जो त्रुटि आपके देखनेमें आये उसे नजर-अन्दाज करके मुझे निभा लें। अपना काम शुरू करनेसे पहले मैं आपको बहन सरोजिनी नायडूका सन्देश सुनाना चाहता हूँ। वे जब अहमदाबाद पधारीं, तब मैंने उन्हें यह सलाह दी थी कि यदि वे सूरत आयें तो अच्छा होगा। उन्होंने कहा कि रविवारके दिन उन्हें एक जरूरी काम है। उसके बाद डॉ० होराका तार आया। तब मैंने उनसे पुनः कहा कि यदि वे नहीं आयेंगी तो सूरतके लोगोंको बड़ी निराशा होगी, इसलिए उन्हें चलना ही चाहिए। उनपर ज्यादा जोर डाल सकनेकी गरजसे यह भी मालूम कर लिया कि उन्हें कौन-सा जरूरी काम था। बात यह है कि वे अनेक वर्षोंसे अस्वस्थ चली आ रही हैं। किन्तु उनका मनोबल इतना प्रब और उनका स्वदेश-प्रेम इतना उत्कट कि जब कभी कामका मौका आता है तब वे वहाँ होती ही हैं। भगवान जाने कहाँसे उनमें ऐसी शक्ति आ जाती है कि क्षणभर पहले जो निष्प्राण-जैसी दिखाई देती थीं, मौका आ पड़नेपर उनके मुखपर दुःखका कोई भी चिह्न दिखाई नहीं पड़ता। यह उनकी अद्भुत शक्ति है। बम्बईमें २७ तारीख को एक विशाल सभा होनेवाली है; उसका कार्य सुचारु रूपसे कर सकनेके लिए उन्हें अपने स्वास्थ्यका ध्यान रखना चाहिए। सूरत आनेसे यह हेतु सिद्ध नहीं हो सकता था, इसलिए वे यहाँ नहीं आईं; किन्तु जो भारतकी प्रतिष्ठा हैं, देशका भूषण हैं और जो अपने स्वास्थ्यकी परवाह न करके देशभरमें घूमा करती हैं, ऐसी इस महिलाका ख्याल करके भी हमें अपना सर्वस्व देकर इस सवालपर विचार-विमर्श करना चाहिए। भारतके सभी धर्म यह सिखाते हैं कि एक कर्त्तव्य पूरा करनेके बाद ही दूसरा काम हाथमें लेना चाहिए। आप यहाँ इस अवसरपर एक बड़ी जिम्मेदारी उठानेके लिए आये हुए हैं। जो कर्त्तव्य आपने अपने सिरपर

  1. १. यह सभा जिला [कानून] संघके तत्त्वावधान में हुई थी।