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२९२. पत्र: महात्मा मुंशीरामको

बेतिया
वैशाख शुक्ल ५ [अप्रैल २६, १९१७][१]

महात्माजी,

आपका खत मीलनेसे मुझे बहुत आनंद प्राप्त हुआ है। आपने जो नया नाम[२] धारण कीया है बहुत से उचित है।

यहाका काम बड़ा भारी है। ईश्वरकृपासे अत्याचार दूर होगा। परन्तु चार छ मास तो अवश्य मुझे रहना पड़ेगा। बाबु ब्रीजकिशोरप्रसाद इ० जो सहाय कर रहे है वे योग्य पुरुष है।

आपका,
मोहनदास गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल पत्र (जी० एन० २२०९) की फोटो-नकलसे।

२९३. पत्र : डब्ल्यू० एच० लुईको

बेतिया
अप्रैल २८, १९१७

प्रिय श्री लुई,[३]

आपका आजकी तारीखका लिखा पत्र प्राप्त हुआ।[४]आपने हेकॉकके नाम लिखा अपना पत्र पढ़ जानेके लिए मेरे पास भेजा, तदर्थ धन्यवाद। उस पत्रमें आद्योपान्त व्याप्त स्पष्टवादिताकी में कद्र करता हूँ। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि हम लोगोंके बीच जो कुछ गुजरा है यह उसका बहुत ठीक संक्षिप्त रूप है।

मेरा खयाल है कि बन्दूकोंके बारेमें आपकी नाराजी कुछ हदतक गैर जरूरी है। श्री हेकॉकके सुझावपर ही मैंने आपसे उस मामलेका जिक्र किया था। और यदि मेरे द्वारा किये गये उस जित्रको आप उचित मानते हैं, तब फिर जिनकी बन्दूक छिन गई है उनसे बन्दूकें वापस मिलनेकी संभावनाकी बात कह देनेके लिए मैं दोषी नहीं ठहराया जा सकता। आपके बारेमें लोगोंके दिलोंमें अच्छी भावना पैदा करनेके सिवा इसका कुछ और उद्देश्य नहीं था। मुझे कहते हुए प्रसन्नता होती है कि आपसे

 
  1. १. इस तारीखको गांधीजी बेतियामें थे।
  2. २. स्वामी श्रद्धानन्द।
  3. ३. बेतियाके सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट।
  4. ४. सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स सं० ५२; इसे यहाँ उद्धृत नहीं किया गया है।