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प्रतिवेदन: चम्पारन के किसानोंकी हालतके बारेमें

 

मेरा यहाँका कार्य मुझे दिन-प्रतिदिन ज्यादा-ज्यादा आनन्द दे रहा है। गरीब किसानोंको मेरे पास आकर बैठनेमें बड़ी खुशी होती है; उन्हें लगता है कि मैं जो करूँगा सो ठीक ही करूंगा; वे मेरा भरोसा कर सकते हैं। मैं यही मानता हूँ कि मुझमें उनके इस अपार प्रेमकी पात्रता हो। मैं बागान मालिकोंसे मिलता ही रहता हूँ और उन किसानोंकी ओरसे जो कितने वर्षोंसे अत्याचारोंके बोझके तले कराहते आये हैं उनकी न्याय-भावनाको उकसानेकी अथक कोशिश करता ही रहता हूँ। मैंने सरकारको जो प्रतिवेदन[१] भेजा है उसकी एक नकल मैं तुम्हें भेजूँगा। मुमकिन है उसके कुछ मुद्दे तुम्हारी समझमें न आयें। ऐसा हो तो मुझसे पूछनेमें हिचकना नहीं।

सस्नेह,

तुम्हारा,
बापू

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड
 

३०१. प्रतिवेदन: चम्पारनके किसानोंकी हालतके बारेमें[२]

बेतिया
मई १३, १९१७

चम्पारनके किसानोंकी हालतकी अपनी जांच-पड़तालके फलस्वरूप में जिन प्रारम्भिक निर्णयोंपर पहुँचा हूँ उन्हें माननीय श्री मॉडके सुझावोंके[३] अनुसार यहाँ पेश कर रहा हूँ।

शुरूमें ही मैं यह बता दूँ कि श्री मॉड मुझसे जो आश्वासन चाहते थे वह आश्वासन देना तो मेरे लिए सम्भव नहीं था। वे चाहते थे कि जो वकील मित्र मुझे सहायता पहुँचा रहे हैं उन्हें [इस कामसे] खींच लिया जाये। मैं कहना चाहता हूँ कि इस माँगसे मुझे गहरा दुःख हुआ है। यह माँग में जबसे आया हूँ तबसे बराबर की जाती रही है। मुझे जिलेके बाहर निकाल दिया जाये, यह आज्ञा जबसे वापस ली गई है तबसे मुझसे यह कहा जाता रहा है कि मेरी उपस्थितिसे किसी हानिकी आशंका नहीं है और मेरी सदाशयता सन्देहातीत है; किन्तु वकील-मित्रोंकी उपस्थितिसे ‘खतरनाक स्थिति’ पैदा होनेका डर है। इस सम्बन्धमें मेरा निवेदन यह है कि यदि मेरे बारेमें यह भरोसा किया जा सकता है कि मैं भद्रता और शालीनताके साथ व्यवहार करूँगा तो उसी प्रकार यह भरोसा भी किया जा सकता है कि मैं अपने लिए अपने ही जैसे

 
  1. १. देखिए अगला शीर्षक।
  2. २. प्रतिवेदन विहार और उड़ीसा प्रान्तके मुख्य सचिवको भेजा गया था।
  3. ३. श्री मॉड बिहार और उड़ीसा प्रान्तको कार्यकारिणी परिषद्के उपाध्यक्ष थे। ये सुझाव उन्होंने गांधीजीके साथ अपनी १० मईकी बातचीत में दिये थे। देखिए परिशिष्ट ५।