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पत्र: डब्ल्यू० बी० हेकॉकको

ये सारे कागजात सिआहा और साटे थे। ये सिआहा १३१३ साल फसली और १३१५ फसलीके थे। इनमें से कोई पूरी तरह नष्ट नहीं हुआ था। ( )... दरवाजे और तीनों खिड़कियोंकी चौखटोंपर आगका जरा भी प्रभाव नहीं पड़ा था। दरवाजा 'क' पल्ले और उसका चौखटा सारे मकानमें कहीं नहीं मिले। दरवाजा कोई ७३ फुट ऊँचा और ५ फुट चौड़ा है। इस बातके स्पष्ट चिह्न मौजूद थे कि दरवाजेकी चौखटको निकालकर हटा दिया गया था। पलस्तर टूटकर गिर पड़ा था। चौखटके नीचेकी मिट्टी बिलकुल साफ थी। दरवाजा 'ड' की चौखट चारों ओर थोड़ी-थोड़ी जल गई थी, लेकिन उसे कोई खास क्षति नहीं पहुँची थी। दरवाजेके कुछ कब्जे उसमें लगे हुए थे। मैंने उनकी जाँच की। उनपर लगी जंगके ताजे चूरेसे पता चलता था कि उनमें से पेच निकाले गये थे। दो पेचोंमें से एक पेच अब भी सूराखमें लगा हुआ था। इस चौखटके पल्ले वहाँ नहीं थे। मलबमें जली हुई चौखट या पल्लेका कोई पता नहीं चला। दरवाजा 'क' पर शीशेका कोई फलक नहीं मिला। काँचके करीब आधा दर्जन छोटे-छोटे टुकड़े वहाँ पड़े थे।

कहा जाता है कि पहले इस कमरेका उपयोग लगान जमा करनेके दफतरके रूपमें होता था। बताया गया कि करीब २ या ३ साल पहले यह दफ्तर बन्द कर दिया गया और कम्पनीके सारे कागजात लोहरयिा ले जाये गये। इस अहातेमें सिर्फ एक चौकीदार रहता है। बॅगलेसे करीब एक सौ गजकी दूरीपर एक मकान है जिसमें कोठीके आदमी रहते हैं।

मलबेकी जाँच करनेसे पता चला कि जिस समय आग लगी उस समय कमरेमें बहुत ही थोड़ा सामान रहा होगा। मेरे अनुमानसे रु० २०० से कम ही क्षति हुई है।

बिंध्यबासिनी प्रसाद वर्मा
बी० ए०, एलएल० बी०

[अंग्रेजीसे]
सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० ९२, पृष्ठ १५८-९।
 
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