पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 13.pdf/४५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४२१
पत्र: बिहार तथा उड़ीसाके मुख्य सचिवको

कारियोंकी रिपोर्ट और जमींदारोंकी बात देखे-सुने बिना ही आदेश जारी कर दे। यदि मेरा कोई और मंशा होता तो मेरा स्थानीय अधिकारियों और बागान-मालिक संघोंके पास अपनी टिप्पणीको[१] प्रतियाँ भेजना बेमतलब होता। और आप अनुमति दें तो मैं कहूँगा कि यदि स्थानीय अधिकारियों और बागान-मालिक संघोंको अपने-अपने प्रतिवेदन या विचार अगली ३० जूनसे पहले भेज देनेको कह दिया जाये तो इससे अवधिसे सम्बन्धित बातें हल हो जाती हैं।

इसके वैधानिक पक्ष और न्यायालयोंके निर्णयकी ओर ध्यान न दिया गया हो, ऐसी बात नहीं। मैं कहता हूँ कि विशाल जन-समुदायको पीड़ित करनेवाले किसी भी अन्यायको वैधानिक निर्णयों या वैधानिक प्राविधिकताओंके बलपर बरकरार रखनेकी इजाजत कतई नहीं दी जा सकती। मैं यथेष्ट सम्मान और पूरे आत्म-विश्वासके साथ कहता हूँ कि मैंने आपका ध्यान जिस स्थितिकी ओर आकर्षित किया है वह कई गम्भीर किस्मकी नैतिक समस्याएँ पेश करती है जिनको हल करनेके लिए आवश्यक है कि जहाँ भी वैधानिक प्राविधिकताएँ और वैधानिक निर्णय वास्तविक न्यायके आड़े आयें वहाँ उनको धता बतला दी जाये। जमींदारों और रैयतके बीच इतनी अधिक असमानता है कि न्यायालयों और बन्दोबस्त अधिकारियों तकके लिए यह लगभग असम्भव ही है कि वे अपने सामने पेश मुकदमोंमें सचाईका पता भी लगा सकें। मेरी इस बातको सही सिद्ध करनेवाले उदाहरणोंकी संख्या मेरे सामने हर रोज बढ़ती जा रही है। ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं कि न्यायालयों द्वारा मंजूर कर दिये जानेपर भी अन्यायोंका प्रतिकार हुआ है।

अबवाब (करों) के सम्बन्धमें, मुझे कहना है कि बेतिया राजके आगामी पट्टोंमें जुर्मानेकी एक धारा और जोड़ देनेसे केवल एक आंशिक राहत ही मिल सकेगी और उसमें भी समय काफी लगेगा; क्योंकि उन पट्टोंमें सम्बन्धित कारतकी सारी जमीन शामिल नहीं होगी और जिस अन्यायको सभीने अन्याय माना है उसमें तब ठीक कोई राहत नहीं दी जा सकेगी जबतक कि पट्टोंको समाप्त करके उस सिलसिलेमें नये इकरारनामे नहीं किये जाते। उसका यह मतलब है कि राहत मिलनेमें अनावश्यक विलम्ब होगा। मैं समझता हूँ कि पट्टोंके बारेमें नये इकरारनामे तबतक नहीं किये

जायेंगे जबतक कि भू-सम्पत्तिकी दशाको कोई सुदृढ़ आधार नहीं दिया जाता। साथ में यह भी कहा जा सकता है कि पट्टोंमें जुर्मानेकी धारा जोड़ देनेसे अपनेको कानूनसे ऊपर समझनेवाले जमींदारोंको नियंत्रित नहीं किया जा सकेगा। इसीलिए मेरी विनम्र राय है कि सरकार यदि जमींदारोंको अबवाब, सलामी,[२] जुर्माने, इत्यादि वसूल करने या बेगारमें मेहनत या गालियाँ, हल इत्यादि लेनेके खिलाफ नोटिस जारी कर दे और रैयतमें ऐलान करा दे कि वह जमींदारोंको ऐसे कर अदा न करे और उनको बेगारमें, मेहनत-गाड़ी या हल देना जरूरी नहीं है, तो इस समय यही सबसे उपयुक्त रहेगा; इससे रैयतके दिमागकी परेशानी दूर होगी और यह इस बातका प्रमाण होगा

 
  1. १. देखिए “प्रतिवेदन: चम्पारनके किसानोंकी हालतके बारेमें”, १३-५-१९१७।
  2. २. अनवाब और सलामी――कर और नजराने।