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पत्र: महाराजा बहादुर सर रामेश्वरसिंहको

 

जीवनलालभाईको १५ तारीख तक वेतन देनेकी जो बात चि० छगनलालने लिखी है वह उचित नहीं है। मैं यह तय कर चुका हूँ कि जीवनलालभाईको [पहले] एक पखवाड़ेका अग्रिम वेतन दें और बादमें हर महीनेकी पहली तारीखको वेतन दिया जाये। [यह बात] चेक-बुक देखने तथा भाई फूलचन्दसे पूछनेपर मालूम होगी। भावी खर्चके लिए हमारा विचार ब्याजपर निर्भर करनेका नहीं है। जहाँतक बन पड़ेगा तबतक बिना माँगें जो रकम प्राप्त होगी उसमें गुजारा कर लेंगे। लेकिन हमारी तपश्चर्या में जितनी कमी होगी उतना ही हमें हाथ पसारना होगा। महत्त्वके समस्त कार्योंका विकास जगत्में इसी प्रकार हुआ है। सूदपर चलनेवाली संस्थाएँ अन्तमें निष्क्रिय हो जाती हैं। जनताको जिस संस्थाकी आवश्यकता होगी उस संस्थाकी सार-सँभाल वह कर लेगी। श्रीजी [के मन्दिर ] में यदि धनका भण्डार न हो तो वहाँके पुजारी आध्यात्मिक प्रवृत्तिवाले हों। मेरे इन विचारोंसे अथवा ऐसे प्रबन्धसे शिक्षकोंको चौंकनेकी आवश्यकता नहीं। शुक्ल साहब[१] तथा रेवाशंकरभाईके पास पड़ी रकमसे चार साल तक उनका काम चल सकता है। लेकिन, मैंने डॉक्टर साहबको पत्र लिखा है जिसमें उनसे मौजूदा खर्चका भार उठाने के लिए कहा है। मेरा खयाल है वे उठा लेंगे। तुम उन्हें वर्ष-भरके सारे खर्चका अन्दाज लिख भेजना। मैं बाहर रहा तो यह प्रश्न उठेगा ही नहीं।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७१३) से।

सौजन्य: राधाबेन चौधरी

३३७. पत्र: महाराजा बहादुर सर रामेश्वरसिंहको

रांची
जून ४, १९१७

प्रिय महाराजा साहेब बहादुर,[२]

मैं, आपके सुझावके मुताबिक, प्रस्तावित जाँच-पड़तालके बारेमें अपने विचार लिपि-बद्ध कर रहा हूँ।

मेरी राय है कि जाँच-समिति (या नीचे जैसा सुझाया जा रहा है―― मध्यस्थता-समिति) की नियुक्तिके साथ-ही-साथ उन विभिन्न मुद्दोंके बारेमें ऐलान कर दिया जाना चाहिए जिनका हवाला मैंने सरकारके नाम पिछली १३ मईके अपने पत्रमें दिया था।[३] तिन-कठियाके सारे प्रकार और ढोकरहा कोठीके बकाया तावान और हुन्डोंकी बकाया रकमके रुक्के――सबको समाप्त या रद्द करनेका ऐलान कर दिया जाना चाहिए।

  1. १. डी० बी० शुक्ल।
  2. २. दरभंगाके; बिहार तथा उड़ीसाकी कार्यकारिणी परिषद्के सदस्य।
  3. ३. देखिए “प्रतिवेदन: चम्पारनके किसानोंकी हालतके बारेमें”, १३-५-१९१७।