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३४८. राष्ट्रीय स्कूलके अध्यापकोंसे वार्तालाप

[अहमदाबाद
जून २३, १९१७][१]

मैंने इतना मान लिया है कि आप सब अपना जीवन पाठशालाको समर्पित कर चुके हैं। इस समय हमारी आर्थिक स्थिति क्या है, मैं आपको उससे परिचित कराना चाहूँगा। हमारे पास फिलहाल आश्रमके कोषमें १०,००० रुपया नकद है। इसके अलावा लगभग १०,००० रुपयेके आभूषण आदि हैं जो मुझे [दक्षिण आफ्रिकासे] हिन्दुस्तान आते समय उपहारमें मिले थे तथा एक मित्रने जमीन खरीदकर देनेका वचन दिया है। इसलिए १०,००० रुपये ये हुए। मेरी यह इच्छा है कि मुझे जो उपहार मिले हैं, हालांकि उनका उपयोग देशसेवाके काम में ही करना है, उन्हें मेरे जिन्दा रहते न बेचा जाये, यदि आवश्यकता पड़े तो उन्हें बेचा जा सकता है। यदि हमें अभी कोई सहायता न मिली और आजके जैसा खर्च रहे तो इतने पैसे हैं कि लगभग तीन वर्ष तक निर्वाह हो सकता है। लेकिन मुझे उम्मीद है कि हमें जब जरूरत होगी तब पैसा मिल जायेगा। ऐसा भी हो सकता है कि हम अपने सिद्धान्तके कारण सबको नाराज कर दें और पैसा न मिले। वैसी स्थितिमें अध्यापकोंके लिए ये रास्ते खुले हैं: एक तो पाठशाला छोड़कर किसी अन्य धंधे में लग जायें, आप लोगोंमें से कोई ऐसा गया-बीता नहीं है कि अपनी आजीविका न कमा सके। दूसरा मार्ग है, चाहे जो हो, बाजरेकी रोटी मिले तो वह खाकर भी पाठशाला चलायें। पैसे प्राप्त करनेके लिए भीख माँगना जरूरी हो तो उसके लिए निकल पड़ें। अर्थात् आपको पाठशालाके लिए भिक्षा-वृत्ति अपनानेके लिए तैयार रहना चाहिए।

पाठशालाके उद्देश्य

१. नई शिक्षा पद्धति अपनायेंगे।
२. चरित्र-निर्माणपर विशेष ध्यान दिया जायेगा। उद्देश्य यह होगा कि कमसे-कम दस प्रतिशत विद्यार्थियोंको देश-सेवाके लिए तैयार किया जाये।
३. गुजराती भाषाके गौरवको प्रोत्साहन दिया जायेगा।
४. राष्ट्रभाषा हिन्दीका प्रचार किया जायेगा।
५. नई शिक्षा पद्धतिके अनुसार ग्राम-ग्राममें पाठशालाएँ खोली जायेंगी। उन सभी पाठशालाओं तथा सरकारके लिए भी यह पाठशाला एक नमूना होगी। उद्देश्य यह है कि इस पाठशालामें शिक्षक तैयार किये जायेंगे और उन्हें गाँवोंमें भेजा जायेगा।
६. सरकारसे नई शिक्षण पद्धति स्वीकार करवानी होगी।
  1. १. गांधीजी इस तारीखको अहमदाबादमें थे। वे १८ तारीखको मोतीहारीसे रवाना हुए थे। वे २४ से लेकर २८ तारीख तक बम्बईमें रहे और उसके बाद वापस मोतीहारी लौट आये थे।