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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सुधारनेका प्रयत्न करते हैं तो ऐसा लगता है मानो हम कोई निर्णायक हैं। हमारे इस तरहके बर्तावसे युवक और भी बिगड़ जाते हैं। सबसे अच्छा तो यही है कि उनका दोष साबित होनेपर चला जाने दिया जाये। मैंने अपना विचार बहुत स्पष्ट नहीं किया है; किन्तु तुम समझ जाओगी। न समझ पाओ तो पूछना।

तुम्हारा,
बापू

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड
 

३५३. पत्र: फूलचन्द शाहको

मोतीहारी
आषाढ़ सुदी ११ [जून ३०, १९१७][१]

भाई फूलचन्द,

मैंने [तुम्हें] श्रीमती बेसेंटका एक पत्र रखनेको दिया था। यह दूसरा पत्र भेज रहा हूँ। तुम वहाँके समाचारपत्रोंकी कतरनें [तो] लेते होगे।

कुमारी फैरिंगका इस बारका पत्र पढ़ने लायक है। आश्रमके प्रति उसका जो प्रेम है उससे हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। हमें हृदयकी ऐसी स्वच्छता और पवित्रता प्राप्त करने और निभानेकी कामना करनी चाहिए। ऐसा प्रयत्न करनेमें ही हमारे अस्तित्वकी सार्थकता है।

मोहनदासके वन्देमातरम्

मैंने जिस दिन तुम्हें पत्र लिखा था उसी दिन सुरेन्द्र बीमार पड़ गया था । भूल मुझसे हुई। मैंने उसे एकदम पूरी छूट दे दी। उसका पेट सब-कुछ पचाने लायक नहीं हुआ था। उसने कल उपवास किया। आज आराम है। आज यहाँ सबने एकादशीका व्रत रखा है।

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल गुजराती पत्र (एस० एन० ६३६४) की फोटो-नकलसे।

 
  1. १. इस दिन गांधीजी मोतीहारीमें थे।