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३७९. पत्र: पोपटलालको

श्रावण बदी ५, [अगस्त ७, १९१७][१]

भाईश्री पोपटलाल,

तुम्हारे आश्रममें आनेका समाचार पढ़कर अत्यन्त हर्ष हुआ। वहाँ सबके साथ सलाह करके अपनी शक्तिके अनुसार विषय चुन लेना। तुम्हारी आँखोंको नुकसान न पहुँचे इसका खयाल रखना।

अगले हफ्ते वहाँ पहुँचनेकी आशा करता हूँ।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (एस० एन० ६३८४) की फोटो-नकलसे।

३८०. चम्पारन-समितिको बैठकको कार्यवाहीसे

बेतिया
अगस्त ८, १९१७

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श्री गांधीने सुझाव दिया कि रिपोर्टमें ज्यादातर प्रचलित ढंगके अबवाबोंका स्पष्ट उल्लेख कर दिया जाये, ताकि उनकी भर्त्सना की गई है या नहीं इस विषयमें कोई सन्देह न रहे। इसे स्वीकार कर लिया गया।

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जुर्माने――जुर्मानोंके बारेमें तय करनेकी सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि उन मामलोंमें जिनमें जमींदार भी शामिल हों, क्या सिफारिश की जाये। सभापतिने कहा कि मेरी रायमें श्री गांधीका ऐसे सारे मामलोंका अदालतमें ले जानेका सुझाव रैयतके लिए हानिकर होगा; और इसके लिए कानून बनानेकी जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि यदि निम्नलिखित बातें स्पष्ट रूपसे कह दी जायें और समझ ली जायें तो श्री गांधीकी आपत्तियोंका समाधान हो जायेगा――

(१) कि [जुर्मानेकी] अदायगी स्वेच्छासे की जायेगी;
(२) कि यदि रैयत ऐसा समझे कि वह जिम्मेदार नहीं है अथवा अदायगीकी रकम बहुत ज्यादा है तो वह अदायगी करनेसे इनकार कर सकती है।
  1. १. पत्र गांधीजीके सन् १९१७ के पत्र-संग्रहमें पाया गया और इसलिए सन् १९१७ का माना गया है। गांधीजी बेतियाले अहमदाबाद १६ अगस्तको रवाना हुए थे; इस तथ्यसे भी उक्त निर्णयकी पुष्टि होती है।