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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लगानमें अन्य स्थानोंकी तुलनामें कहीं अधिक वृद्धि की गई है। निश्चय ही, बेतियाके खमवाले गाँवोंमें ये सवाल नहीं पैदा होते, लेकिन सम्पूर्ण समानता स्थापित कर सकना असम्भव है, और हर हालतमें उक्त प्रस्तावसे उस रैयतकी दशा सुधरेगी जो नीलकी खेती करती है। जहाँतक इस आलोचनाका सवाल है कि प्रस्ताव बागान-मालिकोंके लिए मुँहमाँगी मुराद जैसा है, कहना यह है कि केवल वहीं लगान वृद्धिकी अनुमति दी जायेगी जहाँ बागान-मालिककी कानूनी जायदाद होगी, और वहाँ भी जायदादकी पूरी कीमत नहीं दी जायेगी। मैं ऐसा नहीं मानता कि विशेष अदालतमें बहुत ज्यादा कठिनाइयाँ पैदा होंगी। जमीनके बन्दोबस्तके सरकारी कागजातोंकी मददसे मामले निपटाने में आसानी होगी और जिस इलाकेके बारेमें फँसले होने हैं वह भी बहुत बड़ा नहीं है।

...श्री रेनीने[१] कहा कि यह प्रस्ताव वैसा ही है जैसा कि छोटा नागपुरमें अपनाया गया था। छोटा नागपुरमें खेतीकी अदल-बदल कानूनके अन्तर्गत अनिवार्य है। उन्होंने इस बातसे इनकार किया कि सरकारने यह बात कभी स्वीकार नहीं की थी कि [नीलकी] खेती करनेकी बाध्यता काश्तकारीकी एक शर्त हो सकती है, क्योंकि खण्ड २९ की अवधान धारा (३) इस बातका स्पष्ट प्रमाण है कि सरकारने इसे स्वीकार किया है। इसी प्रकार श्री इविनके शरहबेशीके बारेमें बोर्डके १६ अक्तूबर, १९१२ के पत्रसंख्या ५०३२-आर० (ए) में भी उक्त बात स्वीकार की गई है। श्री गांधीने कहा कि यदि कानूनी अधिकार न्यायसंगत नहीं है, अथवा उसका सर्वथा दुरुपयोग किया गया हो, तो कोई मुआवजा नहीं देना चाहिए। ...

श्री रोडने कहा कि ज्यादातर रैयतने इसी शर्तपर अपनी-अपनी जमीन ली थी कि वे नील पैदा करेंगे। श्री गांधीने कहा कि शिकायत नीलके विरुद्ध नहीं है, बल्कि जिस ढंगसे और जिन तरीकोंसे उसकी खेती कराई जाती है, उसके विरुद्ध है। ... शिकायत प्रणालीके विरुद्ध नहीं; बल्कि उस प्रणालीके अन्तर्गत रैयतको पिछड़ा हुआ रखकर उसे जो नैतिक और बौद्धिक क्षति पहुँचाई जाती है उसके विरुद्ध है। सभापतिने कहा कि प्रस्तावसे रैयतको बहुत-कुछ प्राप्त होता है, जैसे

(१) यदि वे न चाहें तो नील पैदा न करनेकी स्वतन्त्रता,
(२) अपनी सबसे अच्छो जमीनपर नीलकी खेती करनेकी मजबूरीसे मुक्ति,
(३) कारखानेके कर्मचारियोंकी देखरेख में काम करनेसे मुक्ति,
(४) केवल ऐसे मामलोंमें जहाँ भूमिपर जमींदारका कानूनी अधिकार है, वहाँ रैयतको मुआवजा तो देना होगा, लेकिन पूरा नहीं। शेष मामलोंमें उसे कोई मुआवजा नहीं देना होगा।

श्री गांधीने कहा कि इन चार बातोंमें एक भी बात ऐसी नहीं है जिसका प्रस्ताव स्वयं बागान-मालिकोंने न किया हो। लेकिन श्री रेनीने कहा कि बागान-मालिक जहाँ

  1. १. सर जी० रेनी; चम्पारन भूमि सुधार जाँच समितिके सदस्य।