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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

आम सवालकी फिर चर्चा करते हुए श्री ऐडमीने कहा कि स्थितिके औचित्यका तकाजा है कि हम पिछले ५९ वर्षोंको बिलकुल भूल जायें और दोनों पक्षोंको उसी स्थितिमें ला रखें जिसमें वे नीलकी खेती शुरू न होनेकी हालतमें होते। श्री गांधीने कहा कि ऐसा नहीं किया जा सकता क्योंकि इन पिछले ५० वर्षोंमें रैयतको जो-कुछ मिला है उसकी तुलनामें उसे खोना बहुत-अधिक पड़ा है। श्री रेनीने मधुबन बाबूकी जागीरमें लगानकी ऊँची दरको ओर समितिका ध्यान दिलाया। श्री गांधीने स्वीकार किया कि भारतीय जमींदारोंने अपनी रैयतका लगान बढ़ा दिया है। तब अध्यक्षने कहा कि चूँकि श्री गांधी २५ प्रतिशत छूटकी बात स्वीकार नहीं कर सकते, अतः दो ही रास्ते बचते हैं――समिति बहुमतसे सिफारिश कर सकती है कि २५ प्रतिशत छूट उचित है। श्री गांधी असहमतिकी टिप्पणीमें बता सकते हैं कि उनकी दृष्टिमें और अधिक छूट क्यों जरूरी है। और फिर यह सरकार के ऊपर छोड़ दिया जाये कि वह दोनों सम्मतियोंपर विचार करनेके बाद जैसा ठीक समझे कानून बनाये। लेकिन यह रास्ता तभी अपनाया जा सकता है जब मुझे इत्मीनान हो कि सरकारका जो भी फैसला हो उसे दोनों पक्ष स्वीकार कर लेंगे। यदि उसे स्वीकार नहीं किया गया तो संघर्ष और असन्तोष फिर भी बना रहेगा, और वैसी स्थितिमें समितिको लगान तय करनेके दूसरे तरीकेकी सिफारिश करनी पड़ेगी, यानी एक विशेष अदालतकी स्थापना करनेकी। में आशा करता हूँ कि शान्तिके हितमें यही ठीक होगा कि हम पहले तरीकेको स्वीकार कर लें। इसमें यह बात तयशुदा मानी जायेगी कि सरकार जो-कुछ निश्चित करेगी उसे ईमानदारीसे स्वीकार कर लिया जायेगा। श्री गांधीने कहा कि मैं सरकारका निर्णय स्वीकार करनेका वचन दे सकता हूँ, और मैं रयतको भी यही सलाह दूँगा कि वह उसका विरोध न करे। श्री रोडने पूछा कि सरकार इस समय जिस विधेयकपर विचार कर रही है, उसका क्या होगा। श्री गांधीने कहा कि मेरी रायमें वांछनीय यही है कि हम अपनी सिफारिश सरकारको तुरन्त भेज दें, ताकि सरकार कोई निर्णय कर सके, और फिलहाल जो विधेयक विचारार्थ प्रस्तुत है, जल्दीसे-जल्दी रोका जा सके। श्री ऐडमीने शंका उठाई कि कानून बनानेमें तो समय लगेगा। अध्यक्षने कहा कि सरकार सम्भवतः समितिकी रिपोर्टको पहले प्रकाशित करेगी और जनता तथा सम्बन्धित पक्षोंको प्रस्तावोंपर विचार करनेका अवसर देगी। यदि श्री गांधी समितिको बता सकें कि वे कमसे-कम कितनी छूट चाहते हैं तो समितिके लिए अपनी रिपोर्ट तैयार करनेमें सहूलियत होगी और सरकार द्वारा जल्दी ही कोई निर्णय करनेकी सम्भावना भी बढ़ जायेगी। श्री गांधीने कहा कि मैं आँकड़ोंका पुनः अध्ययन करूँगा और इसके बाद कमसे-कम जो छूट मुझे स्वीकार्य होगी, समितिको बता दूँगा।

[अंग्रेजीसे]
सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, सं० १६०, पृष्ठ ३०५-३१२।