वर्षों तक के लिए उतना मुकर्ररी लगान घटाकर भर सकता है। अध्यक्षने कहा कि मैंने राजके लिए भी इस प्रस्तावके न्यायपूर्ण होनेको पूरी तसल्ली कर ली है। नील-उद्योगके कारण बेतिया राजको मुकर्ररी जमाके रूपमें ज्यादा रकम मिलती रही है, इसलिए राजने नील-उद्योगसे काफी लाभ उठाया है, और यदि नीलकी जगह किसी दूसरी चीजकी खेती करनी पड़ती है तो उचित यही होगा कि उसका कुछ भार राज भी उठाये। यही नहीं, यदि इस विवादका अन्त समझौतेमें नहीं होता तो बागान-मालिकोंकी कठिनाइयों के कारण राजको जमाकी रकम वसूल करनेमें मुश्किल पड़ेगी; और फिर राजको एक भले भूस्वामीकी हैसियतसे विवादका निपटारा करानेमें हाथ बँटाना चाहिए। इसके सिवा खाम और ठीकाके गाँवोंसे राजको बढ़ी हुई दरपर लगान मिल रहा है, इसलिए इस मदमें अधिक खर्च करने लायक रकम उसके योग्य है। अभीतक जितना पता लगाया जा सका है, उसके मुताबिक शरहबेशीकी असल रकम करीब डेढ़ लाख रुपये है, जिसका १५ प्रतिशत २२,५०० रुपये बैठता है। यदि पूरे ४० प्रतिशतको कटौती मान ली जाये तो राजको प्रतिवर्ष अधिकसे-अधिक इतनी ही रकम छोड़नी पड़ेगी। अध्यक्षके अनुसार राजको इतनी रकम सदाके लिए नहीं छोड़नी है, उसकी मियाद आजसे १५ या २० वर्ष बाद अगले बन्दोबस्त तक के लिए तय कर दी जानी चाहिए। श्री गांधीने कहा कि ऐसे प्रस्तावसे सहमत होनेसे पहले वे इस बातसे अपनी तसल्ली कर लेना चाहेंगे कि राजको नील-उद्योगसे लाभ हुआ था या नहीं और वे यह भी जानना चाहेंगे कि पट्टे मूलतः किन परिस्थितियोंमें मंजूर किये गये थे। अध्यक्षने कहा कि पट्टे लाभदायक रहे हों या नहीं, भार उठाना राजके लिए उचित रहेगा क्योंकि यदि नील-उद्योग न होता तो राजको जमाके रूपमें इतनी अधिक राशि न मिलती। श्री रोडने बतलाया कि राजको जमाके रूपमें काफी अधिक राशि मिलनेके साथ-ही-साथ पट्टोंकी मंजूरीके समय काफी बड़े नजराने भी मिले थे। श्री गांधीने कहा, पट्टे लेना तो एक व्यावसायिक सौदा था और यदि वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार सौदेमें कोई लाभ न हो सका हो तो अब बेतिया राज उसके लिए नुकसान क्यों उठाये। अध्यक्षने कहा कि वह व्यावसायिक सौदा था, ठीक इसीलिए तो बेतिया राजको अब उस सौदेकी बुनियादी चीज――नीलकी खेती ――छोड़नेके एवजमें उसका कुछ भार वहन करना चाहिए। श्री गांधीने उत्तर दिया कि सौदा बेतिया राज और बागान-मालिकों, दो ही पक्षोंके बीच हुआ था। यदि बादमें कुछ दुर्घटनाएँ हो जायें तो राज उसका घाटा क्यों बरदाश्त करे। समितिके पास जितनी थोड़ी सामग्री है उसके आधार-पर कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। अध्यक्षने कहा कि उनके विचारसे तो यदि अतिरिक्त साक्ष्य अपेक्षित है तो केवल इतना ही कि प्रत्येक गाँवने कितना लगान अदा किया और मुकर्ररी जमाके मुकाबले वह कितना कम या ज्यादा है। श्री गांधीने इसपर कहा कि यदि बागान-मालिक एक उचित दरपर खुश्की पद्धति द्वारा उतना ही नील पैदा कर सकते हैं तो कोई वजह नहीं कि ऐसी तबदीलीसे उनको घाटा