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४०२. स्वयंसेवकोंको निर्देश[१]

[सितम्बर १३, १९१७ के पूर्व]

प्रार्थनापत्रपर हस्ताक्षर प्राप्त करनेवाले स्वयंसेवकोंके लिए श्री गांधीने निम्न-लिखित नियमोंकी रचना भी की:

१. प्रार्थनापत्रपर हस्ताक्षर कराते समय यह निश्चय कर लेना चाहिए कि हस्ताक्षर करनेवाला व्यक्ति प्रार्थनापत्र में बताई गई योजनाको ठीक-ठीक समझता है या नहीं।

२. लोग योजनाको समझ सकें, इसके लिए सभा द्वारा तैयार की जानेवाली एक विज्ञप्तिके जरिए किसी स्थानके लोगोंको एक जगह इकट्ठा करके उसे [यानी योजनाकी] उनके सामने पढ़ा जाना चाहिए। यदि पढ़ चुकनेके बाद लोग कोई ऐसे नये प्रश्न उठायें जिनके उत्तर [योजनाकी] प्रस्तावनामें नहीं हैं; तो स्वयंसेवकोंको उन प्रश्नोंका समाधान स्वयं नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें अपने हलकेके प्रधानके सामने रखना चाहिए; और जबतक प्रश्नकर्त्ताक प्रश्नका समाधान न कर दिया जाये, तबतक उसे हस्ताक्षर नहीं करने देना चाहिए।

३. यह बात अच्छी तरह ध्यानमें रखनी चाहिए कि किसी स्थानके किसी भी निवासीपर किसी तरहका दबाव नहीं डालना है।

४. इस बातका ध्यान रखा जाये कि सरकारी कर्मचारी या वे लोग जो समझ नहीं पाये हैं, गलतीसे हस्ताक्षर न कर बैठें।

५. ऐसे तरुण व्यक्तियोंके हस्ताक्षर नहीं लेने चाहिए जिनकी आयु अठारह वर्षसे कमकी प्रतीत हो।

६. स्कूलोंमें पढ़नेवाले छात्रोंके हस्ताक्षर न लिये जायें, चाहे उनकी उम्र कुछ भी हो।

७. किसी भी पुरुष या स्त्रीके हस्ताक्षर लिये जा सकते हैं बशर्ते कि स्वयंसेवकको विश्वास है कि वह स्त्री या पुरुष मामलेको समझ सकता है।

८. कोई पुरुष या स्त्री, जो पढ़ या लिख नहीं सकते, उन्हें अपने हाथसे काटनेका चिह्न (क्रॉस) बनाना चाहिए, और फिर उस स्थानके किसी जानेमाने व्यक्तिसे उस कटे हुए चिह्नके सामने गवाहकी हैसियतसे हस्ताक्षर कराना चाहिए।

९. यह बात ध्यानमें रहे कि हस्ताक्षर दो फार्मोंपर लिये जायें।

१०. फार्म गंदे न हों और न मुड़ने-तुड़ने पायें।

११. जिन कागजोंपर हस्ताक्षर नहीं हुए हैं उन्हें तुरन्त मुख्य कार्यालयमें भेज दिया जाये; और जहाँ कोई सभा की गई हो, या करनेका प्रयास किया गया हो, वहाँसे एक रिपोर्ट तुरन्त मुख्य कार्यालयको भेजी जाये।

 
  1. १. देखिए परिशिष्ट ८।