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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करनेकी बात होगी। श्री रेनीने कहा, आवश्यकता इस बातकी है कि बागान-मालिकों द्वारा शेष किराया वसूल करनेके लिए मुकदमा दायर करनेपर भी रैयत जरा भी नतुनच न कर सके। श्री रीडने बताया कि यदि रेकार्डमें तसदीक किये हुए किरायोंकी पुनः जाँच करनी हो तो इसके लिए विधानका होना आवश्यक है और रैयतमें प्रत्येकसे ऐसा इकरारनामा लेना होगा जिसमें सभी विशिष्ट मामलोंमें तय की गई शर्तोंका ब्यौरा हो। अध्यक्षने कहा, कठिनाई यह है कि जहाँ समितियाँ बागान-मालिकों कोहदतक उनके प्रमुखोंसे बातचीत कर रही हैं वहाँ रैयतकी हदतक उन्हें उसके प्रतिनिधियोंसे विचार-विमर्श करना पड़ रहा है। इसे हल करने के लिए जो दो तरीके प्रस्तावित किये गये हैं वे इस प्रकार हैं:

(१) पंच-निर्णय; यह एक लम्बी प्रक्रिया होगी, इसलिए इसके सम्पन्न होनेसे पहले वकालतनामा प्राप्त करना, और
(२) वैधानिक स्वीकृति, जो पंच-निर्णयके बाद श्री गांधीको प्राप्त करनी है।

श्री ऐडमी ने कहा कि यदि दूसरा सुझाव स्वीकार कर लिया गया तो रैयतमें हर व्यक्तिसे अलग-अलग करार करना होगा और उसका पंजीयन कराना होगा। अध्यक्षने बताया कि ऐसी हालतमें खर्च बहुत करना पड़ेगा और यह निर्णय भी करना होगा कि इस खर्चको कौन उठायेगा। श्री गांधीने कहा कि वकालतनामा प्राप्त करनेमें कमसे-कम एक मास लगेगा। श्री रोडने कहा कि उनके विचारमें विधान अधिक अच्छा होगा। श्री रेनीने बताया कि वकालतनामा उपलब्ध करनेसे पहले पंच-निर्णयका होना असम्भव है और उन्होंने श्री गांधीसे पूछा कि क्या वे इस सिफारिशसे सहमत नहीं होंगे कि आवश्यकता पड़नेपर समझौतेको विधान द्वारा अनिवार्य कर दिया जाये? श्री गांधीने इसपर अपनी सहमति दी। श्री रोडने कहा कि उनकी समझमें तिन-कठिया प्रणालीके उन्मूलनके लिए विधान हर तरहसे आवश्यक है और इसलिए उन्हें कोई ऐसा कारण नजर नहीं आता कि शरहबेशीके सम्बन्धमें भी क्यों न विधानमें उपबन्ध शामिल किया जाये। अध्यक्षने कहा कि उनके विचारमें विशेष विधानका प्रस्ताव एक जुआ है; विधान परिषद्पर निर्भर करता है; किन्तु सदस्योंका आम विचार है कि वहाँ इस सम्बन्धमें कोई कठिनाई नहीं होगी। इसपर अन्तिम रूपसे सहमति प्राप्त कर ली गई कि अध्यक्ष महामान्यके पास जायें और सबकी ओरसे प्रार्थना करें कि वे निम्नलिखित आधारपर पंच-निर्णय करें:

(१) तुरकौलियासे सम्बद्ध शरहबेशीमें २० प्रतिशत तथा ४० प्रतिशतके बीच कमी।
(२) पिपरा, मोतीहारी, जलहा, तथा सिरनीमें २५ प्रतिशत तथा ४० प्रतिशतके बीच कमी।

पंच-निर्णय वहीं होना है जहाँ सम्बन्धित पक्ष सहमत हों। सम्बन्धित पक्ष सहमत न हों तो उन्हें आम अदालतमें जानेकी छूट होगी। विभिन्न पक्षोंके लिए पंच-निर्णय भी विभिन्न हो सकते हैं। श्री गांधी इस बातको छोड़ दिया जाना ज्यादा अच्छा समझते