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चम्पारन-समितिकी बैठककी कार्यवाहीसे

युक्तियों को पूरी तरह पेश करना चाहे तो मैं उसका विरोध न करूँगा। अध्यक्षने कहा कि श्री गांधीका जिन मुद्दोंपर विरोध है उन्हें वे ठीक-ठीक बता दें; तब रिपोर्टमें परिवर्तन किया जा सकता है और यदि सम्भव हो तो उसमें सभीके दृष्टिकोणोंका खयाल रखा जा सकता है। श्री रेनीने कहा कि यदि दूसरे अध्यायमें कोई बात विवादास्पद हो तो वह रिपोर्टके विवादास्पद भागमें रखी जा सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि रिपोर्टमें न्यायाधिकरणकी सिफारिश करनी हो तो शरहबेशीके प्रश्न-पर विस्तारसे विचार करना अनावश्यक है, क्योंकि न्यायाधिकरणको उसी प्रश्नका तो निर्णय करना होगा; किन्तु यदि सरकार उस प्रश्नका निर्णय स्वयं कर रही हो तो युक्तियोंको कुछ विस्तृत रूपमें देने की आवश्यकता होगी। श्री गांधीने कहा, मेरा खयाल तो यह है कि सरकारको निर्णय बहुमतके विचारों और मेरे विचारोंके बीचमें देना होगा; मैं तो यही चाहता हूँ कि सरकार मामलेकी न्याय्यता देखकर निर्णय दे और तुरन्त कानून बना दे। यदि सरकार यह मानती है कि शरहबेशी गैरकानूनी है और तिन-कठियाका, कानूनी होनेपर भी, इतना दुरुपयोग किया जाता है कि उसे रद कर देना चाहिए, तो उसको न्यायाधिकरण नियुक्त करनेको आवश्यकता न होगी और वह उसके बिना ही इनके विरुद्ध कानून बना देगी। यदि मैं यहाँ पहले आ गया होता तो मैं किसानोंको मुआवजेके विरुद्ध सलाह देता। किन्तु स्थिति यह है कि मुआवजा दिया जा चुका है; श्री रीड कहते हैं कि उन्होंने केवल मुआवजा देनेकी शर्तपर तिन-कठियाकी रदगीकी सिफारिश करना मंजूर किया है; और यह बात मुझे माननी पड़ती है। अध्यक्षने कहा, समिति सरकारकी ओरसे वचन नहीं दे सकती; किन्तु इस सम्बन्धमें मेरे खयालसे सरकारका दृष्टिकोण क्या है मैं उसका संकेत दे सकता हूँ। यदि पंच-निर्णयसे मामला तय करा लिया जाये तो दोनों पक्षोंकी स्वीकृतिसे सरकार उस समझौतेको कार्यान्वित करनेके लिए किसी कठिनाईके बिना कानून बना सकती है। यदि समझौता हो तो दो विकल्प रह जाते हैं:

(१) सरकार स्वयं निर्णय कर ले और उसके अनुसार कानून बना दे, या
(२) यह मामला एक विशेष न्यायाधिकरणको सौंप दिया जाये या मामूली अदालतोंके लिए छोड़ दिया जाये।

पहले विकल्पके सम्बन्ध में यह बात है कि उसमें सम्पत्तिके महत्त्वपूर्ण दावोंको प्रभावित करनेवाले प्रश्न आते हैं। यदि सरकार इन्हें अपनी मरजीसे तय करे तो वह उसकी मनमानी और जोर-जबरदस्ती होगी। इसलिए समझौता न हुआ तो कदाचित दूसरा विकल्प ही स्वीकार किया जायेगा। अध्यक्षने आगे कहा, श्री गांधी रिपोर्टमें जो परिवर्तन करना चाहते हैं जबतक समितिके सम्मुख उसके सम्बन्धमें निश्चित सुझाव न हों, तबतक आगे बढ़ना असम्भव है। मैं तो यह चाहता हूँ कि रिपोर्ट यथासम्भव सर्वसम्मत हो; अर्थात् जो भी विवादास्पद मामला हो वह शरहबेशी-सम्बन्धी भागमें आ जाये। श्री गांधीने कहा कि तिन-कठियाका दायित्व और शरहवेशीका औचित्य कुछ मामलोंमें