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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उससे कहा कि मैं उसे निश्चित किराया दूँगा। मुझे सत्याग्रह करना पड़ा तब कहीं वह मुझे ले गया। मैंने उससे यही कहा, मुझे या तो तुम गाड़ीसे खींचकर उतार दो या पुलिसके सिपाहीको बुला लो।

लौटते समय भी यात्रामें ऐसी ही दशा रही। डिब्बा पहले ही भर चुका था और यदि मेरे एक मित्र बीचमें न पड़ते तो मैं बैठनेकी जगह भी न पा सकता। अवश्य ही में यात्रियोंकी निश्चित संख्याके अतिरिक्त था। वह डिब्बा ९ आदमियोंके लिए बनाया गया था, परन्तु उसमें हर समय १२ आदमी तो रहते ही थे। एक स्थानपर रेलवेका एक बड़ा कर्मचारी एक विरोधकर्त्तापर बिगड़ गया। उसने उसे पीटनेकी धमकी दी और कुछ यात्रियोंको मुश्किलसे डिब्बेमें ठूँसनेके बाद दरवाजा बन्द करके ताला लगा दिया। इस डिब्बेमें एक पाखाना था, परन्तु हम उसे पाखाना नहीं कह सकते। वह यूरोपीय पाखानेके ढंगका बना था, परन्तु उसका व्यवहार उस रूपमें नहीं किया जा सकता था। उसमें एक नल था, परन्तु उसमें पानी बिलकुल नहीं था और मेरे इस कथनका खण्डन नहीं किया जा सकता कि उसकी गन्दगीसे बीमारी फैल सकती थी।

डिब्बा भी बिलकुल खराब दिखता था। लकड़ीकी चीजोंपर गर्दकी बहुत मोटी तह जमी थी और मेरा खयाल है कि उनको कभी साबुन या पानीसे नहीं धोया गया था।

इस डिब्बेमें कई तरहके यात्री थे। उनमें तीन हृष्ट-पुष्ट पंजाबी मुसलमान, दो सुसंस्कृत तमिल और दो मुसलमान व्यापारी थे जो पीछेसे आकर हम लोगोंमें सम्मिलित हो गये थे। व्यापारियोंने कहा कि जगह पानेके लिए उन्हें रिश्वत देनी पड़ी है। एक पंजाबीको यात्रा करते तीन रातें बीत गई थीं और वह बहुत थका-माँदा था। किन्तु वह लेट नहीं सकता था। उसने बताया कि वह दिन-भर सेंट्रल स्टेशनपर बैठा-बैठा यात्रियोंको टिकट लेनेके लिए रिश्वतें देते देखता रहा। दूसरेने कहा कि उसे टिकट लेने और बैठनेकी जगह पानेके लिए पाँच रुपये देने पड़े। वे तीनों आदमी लुधियाने जानेवाले थे और उन्हें अभी कई रात यात्रा करनी थी।

जो-कुछ मैंने कहा है वह कोई अपवाद नहीं बल्कि आम बात है। मैं रायचूर, ढोंढ, सोनपुर, चक्रधरपुर, पुरुलिया, आसनसोल तथा दूसरे जंक्शन स्टेशनोंपर उतरा हूँ और उन स्टेशनोंके मुसाफिरखानोंमें गया हूँ। उन्हें देखकर लज्जा आती है; उनमें कोई व्यवस्था और सफाई नहीं बल्कि बड़ी अव्यवस्था है और भयंकर शोरगुल होता है। यात्रियोंके बैठनेके लिए बेंचें या तो हैं ही नहीं और हैं भी तो काफी नहीं हैं। वे गन्दे फर्शपर बैठते और गन्दा खाना खाते हैं। वे चाहे जहाँ जूठन फेंकते और थूकते हैं; और चाहे-जैसे बैठते हैं और सब जगह तम्बाकू पीते हैं। उन मुसाफिरखानोंके साथ बने पाखानोंका तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता। शिष्ट भाषणके नियमोंको बिना तोड़े उनका ठीक-ठीक वर्णन करनेकी शक्ति मुझमें नहीं है। कीटाणु-नाशक पाउडर, राख या कीटाणु-नाशक तरल पदार्थोंको तो कोई जानता भी नहीं। उनके आस-पास मक्खियोंका जो झुण्ड भिनभिनाता है वह आपको सावधान करता है कि यहाँ पाँव मत धरना। लेकिन तीसरे दर्जेका यात्री गूँगा और