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४१७. पत्र: भगवानजी वकीलको

रांची
आश्विन बदी ३, [अक्तूबर ३, १९१७][१]

भाई श्री,

तुम्हारी ओरसे भेजे गये कागजात मुझे मिले हैं। उन्हें पढ़कर जो बन सकेगा वह करूँगा। मैं अभी तुरन्त काठियावाड़ आ सकूँगा, यह बात सम्भव नहीं जान पड़ती। [मुझे] चम्पारनसे छुट्टी ही नहीं मिलती।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

भाईश्री भगवानजी अनूपचन्द

शहर राजकोट

काठियावाड़

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें पोस्टकार्डपर लिखित मूल गुजराती पत्र (जी० एन० ५८०६) की फोटो-नकलसे।

 

४१८. पत्र: सर एडवर्ड गेटको

रांची
अक्तूबर ४, १९१७

प्रिय सर एडवर्ड गेट,

आपके इसी माहकी १ली तारीखके पत्रके लिए मेरे धन्यवाद स्वीकार कीजिए। रिपोर्टपर आज सब सदस्योंके दस्तखत हो गये[२]; उसे सबने स्वीकार किया है। मेरी विनम्र सूचना है कि यह रिपोर्ट और [उससे सम्बन्धित] सरकारी प्रस्ताव शीघ्रातिशीघ्र प्रकाशित कर दिये जायें।[३] आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि कुछ [गोरे] जमींदार इस बातके लिए व्यग्र हैं कि मैं शीघ्र ही चम्पारन पहुँचूँ और किसानोंको शान्त करनेका काम हाथमें लूँ। क्या मैं उन्हें, जाँच-समितिने अपनी रिपोर्टमें जो कुछ कहा है सो बतला सकता हूँ?

  1. १. चम्पारनके उल्लेखसे प्रतीत होता है कि यह पत्र १९१७ में लिखा गया था।
  2. २. रिपोर्टपर ३ अक्तूबर, १९१७ की तारीख है; देखिए परिशिष्ट ११।
  3. ३. सपरिषद् गवर्नंरकी आज्ञा (ऑर्डर-इन-कौंसिल) ६ अक्तूबर, १९१७ को जारी हुई थी, देखिए परिशिष्ट १२ और चम्पारन काश्तकारी विधेयक (चम्पारन एग्रेरियन बिल), परिशिष्ट १३।