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परिशिष्ट

परिशिष्ट १

बनारसकी घटनाके बारेमें श्रीमती बेसेंटका स्पष्टीकरण

मद्रास,
फरवरी १०, १९९६

श्री गांधीने एक वक्तव्य[१] दिया है। उसे तार द्वारा पाकर हमने अपने पत्रमें छापा है। इस सम्बन्धमें मुझे यह कह देना उचित लगता है कि मेरे हस्तक्षेपका कारण मेरे पीछे खड़े अंग्रेजका, जो मेरे खयालसे खुफिया पुलिसका अधिकारी था, कथन था। मैंने उसे यह कहते सुना “ये जो कुछ कह रहे हैं, वह सब नोट किया जा रहा है; और कमिश्नरके पास भेजा जायेगा।” जो-कुछ कहा गया था उनमें से कई वाक्योंका अर्थ ऐसा निकाला जा सकता था जो, मैं जानती हूँ, निश्चय ही श्री गांधी को अभिप्रेत नहीं हो सकता था; इसलिए मैंने अध्यक्षसे यह कहना अधिक अच्छा समझा कि इस सभामें राजनीतिकी चर्चा अनुपयुक्त है। मैंने यह नहीं कहा था कि राजा लोग चले जायें। मुझे यह भी ज्ञात नहीं कि यह बात किसने कही थी। मैं बहुत अच्छी तरह जानती हूँ कि श्री गांधी किसीको मारनेके बजाय स्वयं मरना पसन्द करेंगे। किन्तु मेरा खयाल यह है कि उनके कथनका गलत अर्थ निकाला जा सकता था और बनारसकी जैसी स्थिति थी उसमें मुझे उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा खतरेमें मालूम होती थी। सार्वजनिक शान्ति किसी भी प्रकार भंग न हो, यह चिन्ता तो उनके इस विचारसे बहुत ही स्पष्ट हो जाती है कि हमें कांग्रेसका अधिवेशन बुलाकर भी सरकारको परेशानीमें न डालना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]

न्यू इंडिया, १०-२-१९१६

बंगाली, १२-२-१९१६
 
  1. १. देखिए “भेंट: बनारसकी घटनाके सम्बन्धमें ए० पी० आई० को”, ९-२-१९१६।