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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

(४) उपखण्ड (३) की धारा (क) के अन्तर्गत संविहित किये गये अधिकारीका निर्णय निम्नलिखित विषयोंमें अन्तिम होगा――

(क) किसी काश्तकार द्वारा अदा किये जानेवाले लगानमें जो वृद्धि की गई है वह खण्ड ३ में निरूपित प्रकारकी शर्त, विशेष शर्त या आरोपणसे छुटकारा देनेके बदलेमें ही की गई है या नहीं, और यह भी कि ऐसी वृद्धिकी राशि कितनी है;
(ख) अधिकार-सूची (रेकर्ड ऑफ राइट्स) में किया गया कोई इन्दराज खण्ड ३ के उपखण्ड (२) में निरूपित प्रकारकी किसी विशेष शर्त या आरोपणका इन्दराज ही है या नहीं;
(ग)उपखण्ड (२) की व्यवस्थाओंके अन्तर्गत अधिकार-सूची (रेकर्ड ऑफ राइट्स) में प्रविष्ट किये जानेवाले लगानकी राशि कितनी हो;

और ऐसे निर्णयके सही या गलत होनेके बारेमें न कोई मुकदमा दायर किया जा सकेगा और न अदालतमें कोई कार्रवाई हो सकेगी।

(५) उपखण्ड (१) की धारा (क) में उल्लिखित किसी भी काश्तकारके मामले में उसकी काश्तके लगान के सम्बन्धमें अधिकार-सूची (रेकर्ड ऑफ राइट्स) में अन्तिम रूपसे प्रकाशित इन्दराजको पहली अक्तूबर, १९१७ से पहलेके बकाया लगानकी वसूली से सम्बन्धित दावे या अदालती कार्रवाईके सिलसिलेमें ऐसी काश्तके सम्बन्धमें बढ़ी हुई दर लागू होनेके दिनसे लेकर फसली साल १३२४ के अन्ततक सालाना लगानकी अदायगीके योग्य राशिका निर्णायक साक्ष्य माना जायेगा:

यह उपखण्ड इस अधिनियमके लागू होनेके समय विचाराधीन दावों और अदालती कार्रवाइयोंपर भी लागू होगा।

फसल विशेषकी एक निर्दिष्ट मात्रा देनेके अल्पकालीन करारकी रक्षा

५. इस अधिनियमकी कोई भी व्यवस्था किसी काश्तकारको अपने भू-स्वामीके साथ अपनी काश्त या उसके किसी हिस्सेपर होनेवाली उपज-विशेषकी एक निर्दिष्ट मात्रा देनेका करार करनेसे नहीं रोकेगी:

शर्त यह होगी कि
(१) ऐसा करार भंग करनेके लिए हर्जानेका कोई भी दावा इसी आधार-पर किया जा सकेगा कि निर्दिष्ट मात्रामें उपज नहीं दी गई, भूमिके किसी भागमें कोई खास फसल न उगानेके आधारपर नहीं:
(२) ऐसे करारकी अवधि तीन वर्षसे अधिक नहीं होगी; और
(३) दी जानेवाली उपजका मूल्य उसके वजनसे या उसके वजनके सम्बन्धमें मध्यस्थता करनेवालोंकी रायके आधारपर निर्धारित किया जायेगा।

६. इस अधिनियमकी व्यवस्थाएँ, अन्य किसी अधिनियमकी किसी भी व्यवस्थाके बावजूद, प्रभावी होंगी।

[अंग्रेजीसे]
सिलैक्ट डॉक्यूमेंट्स ऑन महात्मा गांधीज मूवमेंट इन चम्पारन, पृष्ठ ५१८-२०