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३९१. स्मट्स-गांधी समझौता

जबतक मुझे 'यंग इंडिया' सिंडीकेटकी ओरसे इस पत्रकी सामग्री और नीतिकी देख-रेख करने की अनुमति मिली हुई है तबतक मैं इसके माध्यमसे देशके सामने एक ऐसे कार्यकी योजना प्रस्तुत करते रहना चाहता हूँ जिसे मैं बुनियादी महत्त्वकी चीज मानता हूँ और जिसका मुझे विशेष ज्ञान भी है। साथ ही में इस पत्रके स्तम्भोंका उपयोग, जहाँ-कहीं आवश्यक होगा, सरकारकी कार्रवाइयोंकी आलोचना करनेके लिए भी करता रहूँगा । यह आलोचना अक्सर लाभदायक ही हुआ करेगी; लेकिन कभी-कभी, जब सरकार कोई ऐसा काम करना चाहेगी जो वास्तवमें देशके लिए आम तौरपर अहितकर होगा, तो यह उसके मार्गमें अस्थायी तौरपर बाधाएँ भी पहुँचायेगा ।

मुझे भरोसा है कि 'यंग इंडिया' के पाठक अगर अभी कुछ समय के लिए इसके पृष्ठोंको दक्षिण आफ्रिकामें बसे अपने देशभाइयोंकी स्थितिके उल्लेखोंसे भरा देखें तो वे इस पर नाराज नहीं होंगे। इसके स्तम्भोंमें ऐसी सामग्री जिसका न लेखकोंको और न मुझे ही कोई विशेष ज्ञान हो, या जिसमें न उनकी विशेष अभिरुचि हो और न मेरी, देनेसे कुछ उपयोगी, प्रामाणिक और जिसपर तत्काल ध्यान देनेकी आवश्यकता हो, ऐसी ही चीजोंका दिया जाना अच्छा है । इसका मतलब यह नहीं कि पत्रको इस प्रकार चलानेका विचार सामने रखकर मैं अन्य लोगोंकी तुलनामें अपने-आपको कुछ श्रेष्ठ मान रहा हूँ। मैं तो अभी इतना ही बता रहा हूँ कि कुछ कालके लिए इस पत्रका उद्देश्य क्या रहेगा। लेकिन मैं यह अवश्य मानता हूँ कि किसी भी सुसंचालित पत्रमें गैरजिम्मेदार और गलत सूचनाओंपर आधारित आलोचना नहीं होनी चाहिए, और न उसमें ऐसी बातोंको ही उठाना चाहिए जिसके सम्बन्धमें उसके संचालकोंको कोई पर्याप्त जानकारी न हो ।

दक्षिण आफ्रिकामें हमारे देशभाइयोंकी स्थितिका यह सवाल कोई कम महत्त्वकी चीज नहीं है। हममें स्वशासनकी कितनी क्षमता है, इसका सही मापदण्ड यही है कि हम अपने दलितसे-दलित भाइयोंके लिए कितनी सहानुभूतिका अनुभव करते हैं। यह उद्देश्य उचित है और इस मामलेमें जो अन्याय किया जा रहा है, वह भी स्पष्ट है; इसलिए जब हमें यह मालूम हो कि यह उद्देश्य दीनों और असहायोंका उद्देश्य है तो हमें इसके लिए काम करनेको और अधिक तत्पर रहना चाहिए। ध्यान अन्यायके गुरुत्वकी ओर देना है, न कि लोगोंके उच्च अथवा निम्न स्थानकी ओर । उपर्युक्त कसौटीके अनुसार दक्षिण आफ्रिकामें हमारे देशभाइयोंकी स्थितिके इस सवालपर सुधारोंके उस सवालसे भी ज्यादा जल्दी ध्यान देनेकी जरूरत है, जिसकी ओर आज सभीकी दृष्टि लगी हुई है। इस प्रश्नके हलके लिए सारे सुधारोंको लागू कर देने तक नहीं रुका जा सकता। इसका हल या तो अभी निकालना होगा; या फिर वह कभी नहीं निकाला जा सकेगा । इसलिए हम आशा करते हैं कि भारतमें फिरसे वही