वे मेरी बातोंको ध्यानपूर्वक सुनते हैं। लोगोंको मेरे पाससे हटना अच्छा नहीं लगता और यदि मैं सारा दिन 'दर्शन' दिया करूँ तो वे मेरे पास बैठे रहनेको सहर्ष तैयार हैं। स्त्रियों और पुरुषों दोनोंकी यही हालत है।
अकालगढ़ और रामनगरके लोग प्रेमसे पागल हो उठे थे, उन्होंने पुष्प वर्षा करके मुझे ढक दिया था और मैंने बयान लेनेके बाद दोनों स्थानोंपर स्वदेशी आदिके सम्बन्धमें उनसे खूब बातचीत की।
सूतकी मालाएँ
फूलोंसे और फूलोंके व्यर्थके खर्च से मैं घबरा उठा हूँ। इसीसे अब मैंने हाथसे कते सूतकी मालाओंकी माँग आरम्भ की है और अब मुझे ऐसी मालाएँ मिलने लगी हैं। अकालगढ़के लोगोंने कुलीन परिवारकी महिलाओं द्वारा काते गये सूत तथा सूतसे बुने हुए वस्त्रोंका मेरे सामने ढेर लगा दिया। उनमें खादीकी सुन्दर चादरें और तौलिये आदि हैं।
ये निरपराध नगर
मेरे मनपर यह छाप पड़ी है कि अकालगढ़ और रामनगरके लोग बिलकुल निरपराध हैं। इन दोनों नगरोंके अच्छे से अच्छे व्यक्तियोंको पकड़ा और परेशान किया गया है, उन्हें जेल में डाल दिया गया है। उनका अपमान किया गया है, उन्हें गालियाँ दी गई हैं और उनपर जुर्माना किया गया है। यहाँ कुछ ऐसी बातें देखने में आई हैं जिनकी बम्बई प्रदेशमें लोग कल्पना भी नहीं कर सकते।
हाफिजाबाद
लेकिन आज में पाठकोंके समक्ष पंजाबके दुःखसे सम्बन्धित और अधिक बातें नहीं रखना चाहता। हम इन दोनों नगरोंके प्रति मोह-ममताका भाव हृदयमें रखकर हाफिजाबाद पहुँचे। हाफिजाबाद अपेक्षाकृत बड़ा नगर है। वहाँ धान कूटनेकी मिलें हैं और दूसरा व्यापार भी अच्छा चलता है इसलिए देखने में वह गाँवकी अपेक्षा नगर ही लगता है और समृद्धिशाली प्रतीत होता है। यहाँके लोगोंको बिलकुल निर्दोष तो नहीं कहा जा सकता, फिर भी दोषके प्रमाणमें बहुत ज्यादा कड़ी सजा दी गई है। मालूम होता है कि अधिकारी एक ही पाठ सीखे हैं। उनका खयाल है कि नेताओंको अपमानित किया जाये और यदि बन सके तो उनका नाश कर दिया जाये।
ईश्वरेच्छा प्रबल है
लेकिन मनुष्यका सोचा हुआ हमेशा नहीं होता। इस प्रसंगमें नरसिंह मेहताका एक गीत[१] याद आ रहा है जिसका भावार्थ यह है "अगर मनुष्यके प्रयत्न सफल हों तो कोई भी दुःखी न रहे।" अधिकारियोंने समझा था कि लोगोंको दबाकर वे अब बिलकुल निरंकुश हो जायेंगे। लेकिन दवानेका परिणाम विपरीत निकला, नेतागण डरे
- ↑ नीपने नरथी तो कोई न रहे दुःखी।