२८१. पत्र : नारायण दामोदर सावरकरको
लाहौर
जनवरी २५, १९२०
आपका पत्र प्राप्त हुआ।[१] आपको परामर्श देना कठिन कार्य है। तथापि मेरा सुझाव है कि आप एक संक्षिप्त याचिका तैयार करें जिसमें तथ्योंको इस प्रकार प्रस्तुत करें ताकि यह बात बिलकुल स्पष्ट रूपसे उभर आये कि आपके भाई साहबने जो अपराध किया था उसका स्वरूप बिलकुल राजनीतिक था। में यह सुझाव इसलिए दे रहा हूँ कि तब जनताका ध्यान उस ओर केन्द्रित करना सम्भव हो जायेगा। इस बीच, जैसा कि मैं अपने एक पहले पत्रमें[२] आपसे कह चुका हूँ, में अपने ढंगसे इस मामलेमें कदम उठा रहा हूँ।
हृदयसे आपका,
हस्तलिखित अंग्रेजी मसविदे (एस॰ एन॰ ७०४३) की फोटो-नकलसे।
२८२. पत्र : आसफ अलीको
जनवरी २५, १९२०
आपकी बीमारीका समाचार सुनकर मुझे दुःख हुआ। मुझे आशा है कि आप पूरी तरह स्वस्थ भले न हुए हों फिर भी पहले से अच्छे हो गये होंगे।
मैं आपके दो टूक पत्रके लिए आपको धन्यवाद देता हूँ।
गो-वध विषयक प्रस्तावके सम्बन्धमें कोई गलतफहमी न होने पाय इसके लिए मैं निश्चय ही सारे आवश्यक कदम उठाऊँगा। मैं आपसे इस बातमें पूरी तरह सहमत हूँ कि इस प्रश्नपर मुसलमानोंके रुखके बारेमें झूठी आशाएँ पैदा नहीं की जानी चाहिए,
- ↑ डॉ॰ सावरकरने अपने १८ जनवरीके पत्र में लिखा था : ". . .कल मुझे भारत सरकार द्वारा सूचित किया गया कि रिहा किये जानेवाले लोगों में सावरकर बन्धु शामिल नहीं हैं।. . .कृपया मुझे बतायें कि इस मामलेमें क्या करना चाहिए। वे (मेरे दोनों भाई) अण्डमानमें दस वर्षोंसे ऊपर कठिन सजा भोग चुके हैं, और उनका स्वास्थ्य बिलकुल चौपट हो चुका है। उनका वजन ११८ पौंडसे घटकर ९५-१०० पौंड रह गया है।. . .यदि भारतकी किसी अच्छी आवहवा वाली जेलमें भी उनका तबादला कर दिया जाये तो गनीमत हो। मुझे आशा है आप सूचित करेंगे कि आप इस मामले में क्या करने जा रहे है।" सावरकर बन्धुओंको आजीवन कालेपानीकी सजा हुई थी। अन्ततः उन्हें १९३७में रिहा कर दिया गया था।
- ↑ यह पत्र प्राप्त नहीं है।