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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय


साम्राज्य-सरकारको नीति हमेशा मिल-जुलकर काम करने की—भारतीयोंको जोर-जबरदस्तीसे नहीं, प्रेमसे जीतने की रही है। हर ब्रिटिश व्यक्ति मानता है कि ब्रिटिश साम्राज्यका वैभव तभीतक है जबतक उसमें भारतीय साम्राज्य शामिल है। खुद नेटाल भी अपने वैभवके लिए भारतीयोंका कम ऋणी नहीं है। ऐसी सूरतमें नेटालके उपनिवेशवासियोंका स्वतन्त्र भारतीयोंके प्रवेशका इतना दुराग्रहके साथ विरोध करना स्पष्ट ही कोई देशभक्तिका काम नहीं कहा जा सकता। किसीको भी दूर रखने की नीति अब पुरानी और निकम्मी हो चुकी है और उपनिवेशियोंको चाहिए कि वे भारतीयोंको मताधिकार प्रदान करें। साथ ही, अगर किन्हीं बातोंमें वे कम सभ्य दिखाई दें तो अधिक सभ्य बननेमें उनकी मदद करें। मैं तो कहता हूँ कि अगर साम्राज्यके सभी अंगोंको प्रेमके साथ हिल-मिलकर रहना है तो सभी उपनिवेशोंमें इसी नीतिसे काम लिया जाना चाहिए।

क्या अभी ब्रिटिश साम्राज्यके तमाम हिस्सोंमें भारतीयोंको आने दिया जाता है?

आस्ट्रेलियामें अभी-अभी यह प्रयत्न शुरू हुआ है कि भारतीयोंको आने न दिया जाये। परन्तु विधानपरिषदने इस विषयके सरकारी विधेयकको नामंजूर कर दिया है। परन्तु क्षण-भरको मान लें कि आस्ट्रेलियामें यह नीति स्वीकृत भी हो जाती है, तो भी इंग्लैंडकी सरकार इसे कहाँतक मंजूरी देगी, यह देखने की बात है। और फिर यदि आस्ट्रेलिया इसमें सफल हो जाये तो भी नेटालके लिए यह अच्छा नहीं होगा कि वह एक बुरी बातमें दूसरेका अनुकरण करे। यह उसके लिए अन्तमें जाकर आत्मघातक ही साबित होगा।

भारत जानेमें आपका मुख्य हेतु क्या था?

स्वदेश जानेका मेरा हेतु तो अपने परिवार, पत्नी और बच्चोंसे मिलने का था, जिनसे पिछले सात वर्षोंसे मैं प्रायः लगातार दूर ही रहा हूँ। मैंने यहाँके भारतीयोंसे कह दिया था कि मुझे कुछ समयके लिए स्वदेश जाना होगा। उन्हें लगा कि इस यात्रामें शायद मैं नेटाल-निवासी देशभाइयोंके लिए भी कुछ कर सकूं और मुझे भी ऐसा ही लगा। और मैं आपको यहाँ थोड़ा-सा विषयान्तर करके बता दूँ कि नेटालमें हम मुख्यतः भारतीयोंकी स्थितिके बारेमें नहीं, किन्तु केवल एक सिद्धान्तके लिए लड़ रहे हैं। हमारे आन्दोलनका उद्देश्य यह नहीं है कि हम उपनिवेशको भारतीयोंसे भर दें या नेटालमें भारतीयोंकी स्थिति क्या है, उसका निश्चय हो जाये। हमारा असली उद्देश्य तो यह है कि ब्रिटिश भारतसे बाहर साम्राज्यमें भारतीयोंका स्थान क्या होगा, इसका एकबारगी निश्चय हो जाये। हम साम्राज्य-सम्बन्धी इस प्रश्नका ही निर्णय करने का प्रयत्न कर रहे हैं। जिन कुछ भारतीय सज्जनोंको इस प्रश्नमें दिलचस्पी थी, उन्होंने डर्बनमें मुझसे चर्चा की थी कि भारत पहुँचनेपर इस बारेमें मझे क्या करना चाहिए। और कार्यकी योजना सिर्फ यह रही कि मुझे भारतमें यात्रा करनेका खर्च नेटाल-कांग्रेससे मिलेगा। जैसे ही मैं भारत पहुँचा, मैंने वह पुस्तिका[१] प्रकाशित कर दी।

  1. 'हरी पुस्तिका'।