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५०. अभिनन्दन-पत्र : रानी विक्टोरियाको[१]

[२१ मई, १८९७ के पूर्व][२]

आपके शानदार और कल्याणकारी राज्यका साठवाँ वर्ष पूरा हो रही है। उसके आनन्दके चिह्न-स्वरूप हमें यह सोचकर अभिमान है कि हम आपकी प्रजा है। यह जानकर तो हमारा अभिमान और भी बढ़ जाता है कि भारतमें हम जिस शान्तिका उपभोग कर रहे हैं और जीवन तथा सम्पत्तिकी सुरक्षाका जो विश्वास हमें विदेशों में जाकर पराक्रम करने का साहस प्रदान करता है, उस सबका मूल हमारी यह स्थिति ही है। हम आपके प्रति निष्ठा और भक्तिकी उन भावनाओंको पुनः प्रतिध्वनित किये बिना नहीं रह सकते जो आपके विशाल साम्राज्यमें, जिसमें सूर्य कभी अस्त नहीं होता, सर्वत्र, आपकी सब प्रजाओं द्वारा, प्रकट की जा रही हैं। सर्वशक्तिमान् परमात्मा आपके स्वास्थ्य और शक्तिको हमारा शासन चलाने के लिए दीर्घ कालतक अक्षुण्ण रखे—यही हमारी हार्दिक कामना और प्रार्थना है।

[अंग्रेजीसे]
नेटाल मर्क्युरी, ३-६-१८९७

५१. पत्र : आदमजी मियाखानको

ट्रान्सवाल होटल
प्रिटोरिया
२१ मई, १८९७

रा॰ रा॰[३] आदमजी मियाखान,[४]

रानी-सरकारके लिए मानपत्रकी[५] तजवीज कर ली होगी। अगर मानपत्र खुद या छप न गया हो तो उसके सिरनामेमें नीचे दिये अनुसार लिखा दीजिएगा। यह तुरन्त करना है

  1. चाँदीकी ढालपर उत्कीर्ण यह अभिनन्दन-पत्र २१ हस्ताक्षरों सहित, जिनमें इसका मसौदा तैयार करनेवाले गांधीजी के भी हस्ताक्षर थे, नेटालके गवर्नरको पेश किया गया था कि वे रानी विक्टोरियाको पहुँचादे, जिनकी हरीक जयन्ती २२ जून को मनाई जा रही थीं। इसी तरह का एक अभीनन्दन पत्र रानी को ट्रान्सवालके भारतीयों की ओर से भेजा गया था।
  2. देखिए अगला शीर्षक जिससे यह पता चलता है कि २१ मईसे पहले इसका मसौदा तैयार कर लिया गया था।
  3. गुजराती में इसका पूरा रुप "राजमान्य राजश्री" है, हिन्दी में इसके जोड़ी शब्द 'मान्यवर' या 'श्रीमान्' आदी है।
  4. जून १८९६ में ये गांधीजी के भारत आने पर उन्होंने नेपाल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अवैतनिक मंत्री का कार्यभार संभाला और उस पद पर १८९७ तक रहे।
  5. देखिए पिछला शीर्षक।
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