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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

ज्यादा परिश्रमी और विश्वसनीय काले मजदूर प्राप्त करने थे, और भारतने यह आवश्यक पूर्ति की। गोरोंपर इन गैर-गोरे मजदूरोंका यह ऋण है कि जिस मिश्र समाजके वे अंग हैं उसमें स्वयं सबसे निचली सीढ़ीपर रहते हुए, उन्होंने गोरे लोगोंको सम्पूर्ण सामाजिक क्षेत्रमें एक सीढ़ी ऊपर उठा दिया है। अगर टहल-चाकरीके काम गोरोंको करने होते तो निश्चय ही वे इस सीढ़ीपर न होते। उदाहरणके लिए, अगर काले मजदूर न होते तो आज जो गोरा कुलियोंकी टोलीपर हुक्म चलाता है उसे उस समय खुद मजदूरोंको टोलीमें शामिल होना पड़ता। फिर, जो आदमी यूरोपमें किसी व्यापारीका मुकद्दम होता है वह इस देशमें आकर स्वयं कुशल व्यापारी बन जाता है। इसी तरह काले मजदूरोंके आनेसे गोरोंको ऊँची बातोंमें ध्यान और शक्ति लगाने का अवसर मिला है। अगर उनमें से ज्यादातर लोगोंको निम्नतम कोटिके श्रममें लगना पड़ता तो वे ऐसा करने में असमर्थ होते। इसलिए, शायद अब भी देखा जा सकेगा कि भारतीयोंके ब्रिटिश उपनिवेशोंमें आनेसे आज जो कमियाँ आ गई हैं वे पृथक्करणको पुराण-पंथी नीति स्वीकार करने से उतनी दूर नहीं होंगी, जितनी कि उनमें बसनेवाले भारतीयोंको राहत देनेवाले कानूनोंके उत्तरोत्तर और बुद्धिमत्तापूर्ण प्रयोगसे होंगी। भारतीयोंके बारेमें की जानेवाली एक मुख्य आपत्ति यह है कि वे यूरोपीय नियमोंके अनुसार नहीं रहते। इसका उपाय यह है कि उन्हें ज्यादा अच्छे मकानों में रहनके लिए बाध्य करके और उनमें नयी-नयी जरूरतें पैदा करके क्रमशः उनके रहन-सहनको ऊँचा उठाया जाये। ऐसे प्रवासियोंको पूरी तरह अलग करके उनको पुरानी अनुन्नत स्थितिमें बनाये रखने का प्रयत्न करने की अपेक्षा शायद उनसे यह मांग करना ज्यादा आसान भी होगा कि वे अपनी नयी हालतोंके अनुसार ऊपर उठे। कारण, यह मनुष्यजातिके महान् प्रगति-आन्दोलनोंके अधिक अनुकूल है।

ऐसे लेख (और ये विभिन्न पत्रोंसे दर्जनोंकी संख्यामें उद्धृत किये जा सकते हैं) बताते हैं कि ब्रिटिश सरकारके पर्याप्त दबावसे उपनिवेशोंकी भारतीयों-सम्बन्धी नीतिमें अच्छा परिवर्तन हो सकता है। साथ ही, खराबसे-खराब जगहों में भी ब्रिटिशसहज न्याय आर आचित्य-प्रेम जाग्रत किया जा सकता है। इन्हीं दो बातोंपर हमारी आशाका भवन स्थित है। हम भारतके बारेमें कितनी भी जानकारी फैलायें, जो दबाव अत्यन्त आवश्यक है उसका प्रयोग हुए बिना कोई लाभ होनेवाला नहीं है।

दक्षिण आफ्रिकाके एक अनुभवी पत्रकारकी कलमसे निकला हुआ निम्नलिखित लेख भो यह बताता है कि दक्षिण आफ्रिकामें ऐसे लोग मौजूद हैं, जो अपने चारों ओरके समाजसे ऊपर उठकर सच्चे ब्रिटिश चारित्र्यका परिचय दे सकते हैं :

जीवनमें कभी-कभी मनुष्यको न्याय और स्वार्थ दोनों के बीच अन्तिम चुनाव करना पड़ता है। आत्मसम्मानी वृत्तिके लोगोंके लिए यह काम उन