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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चाहें उन्हें पाप करनेका पूरा अधिकार है। पाप करनेकी छूट होने के बावजूद जो पाप नहीं करते, वही पुण्यवान् कहलाते हैं और उन्हीं के द्वारा देशको लाभ होता है । यदि पापको मिटाने के लिए हम जोर-जबरदस्तीका सहारा लेते हैं तो जिस दोषके कारण हम सरकारको राक्षसी मानते हैं, वही दोष हममें भी आ जाता है और हम भी राक्षस बनते हैं ।

राष्ट्रीयशाला--चरखाशाला

यदि हम यह मानते हों कि सूतके तागेमें ही स्वराज्य है, और यदि चरखे की शक्तिके सम्बन्धमें हमें पूरा विश्वास हो, यदि हम मानते हों कि किसी भी अन्य तरीकेसे हिन्दुस्तानकी आर्थिक उन्नति होना असम्भव है, यदि हम समझते हों कि करोड़ों व्यक्ति अन्य धन्धेके अभावमें कम कमाई होनेके कारण हमेशा कर्जदारकी स्थितिमें रहते हैं तो हम तुरन्त समझ जायेंगे कि हमें अपने बच्चोंको सबसे पहले कातनेकी ही शिक्षा देनी चाहिए। उसके दो परिणाम निकलेंगे। एक तो यह कि बालक स्वावलम्बी बनना सीख जायेंगे और जब बच्चोंको स्कूलमें भी कातना सिखाया जायेगा तब कातने-की प्रवृत्ति बहुत जल्दी व्यापक हो जायेगी। ऐसे व्यक्तियोंको जो बिलकुल हताश हो गये हैं, जिन्हें भिक्षा माँगकर ही पेट भरनेकी आदत पड़ गई है उन्हें चरखा सिखाना जरा कठिन काम है। चरखा कातनेका काम यदि हम उन्हींके लिए ठीक मानें और उसे कंगालोंका ही धन्धा बना देते हैं तो वह कभी व्यापक नहीं होगा, लेकिन जब श्रेष्ठ लोग उसे धर्म समझकर ग्रहण करेंगे तब जल्दी ही सामान्य जनता भी उसे स्वीकार कर लेगी । इसलिए अभी तो बच्चों और वयस्कोंके लिए चरखेके अलावा और कोई महत्त्वपूर्ण शिक्षा नहीं हो सकती, यह सहज ही समझमें आ सकने योग्य बात है।

सीधा हिसाब

इसका हिसाब भी आसान है। जिस प्रवृत्तिसे हमें जल्दसे-जल्द स्वराज्य मिल सकता हो हम सबको उसीमें लगे रहना चाहिए। ऐसी प्रवृत्ति केवल चरखा ही है, क्योंकि उसीके द्वारा हम इसी वर्ष स्वराज्य प्राप्त कर सकते हैं और विदेशी कपड़ेका बहिष्कार करनेका अर्थ ही स्वराज्य प्राप्त करना है। हम अंग्रेजी सम्बन्धी अपने ज्ञानको बढ़ाकर इस वर्ष स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सकते; सो उसे प्राप्त करनेकी प्रवृत्तिको फिलहाल स्थगित रखना चाहिए। इसी तरह हम बहुत बड़े गणितज्ञ बनकर अथवा बड़े-बड़े आविष्कार करके भी इस वर्ष स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सकते, इसलिए इन्हें भी फिलहाल स्थगित रखना चाहिए। इसी प्रकार हम पिन या कागज अथवा इस तरहके अन्य कारखानोंकी स्थापना करके भी स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सकते, अस्तु इस कामको भी फिलहाल स्थगित रखना चाहिए। इसी तरह अन्य कार्योंके बारेमें भी अगर हम स्वयंसे प्रश्न करेंगे तो हमें यही उत्तर मिलेगा। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि हमारी सब शिक्षण संस्थाओं अर्थात् कालेजों, हाईस्कूलों, प्राइमरी स्कूलों तथा अध्यापकोंके लिए ट्रेनिंग स्कूलोंमें सिर्फ एक प्रवृत्तिकी गुंजाइश हो सकती है। आज जो अक्षर-ज्ञान हमें अनिवार्य लगता है सो वह ज्ञान विनोदके समय, हाथोंको आराम देनेके