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(३) धनवान अपनी जायदादकी कीमतका ढाई सैकड़ा दें।
(४) बाकी सारे लोग कमसे कम चार-चार आने दें।

अगर सब लोग इस हिसाब से दें तो कई करोड़ रुपए हो जायेंगे। लेकिन असहयोग करनेवालों और असहयोगसे सहानुभूति रखनेवालों में तो सभी तबकोंके लोग हैं, और कोई तबका इस हदतक पूरा-पूरा असहयोगी नहीं हो पाया है कि चन्दा देनेकी अपनी जिम्मेदारी महसूस करे। तो इस तरह चन्दा देनेका सवाल हम सबकी ईमानदारी, तत्परता और क्षमताकी कसौटी है। उम्मीद की जाती है कि इस महीने की ३० तारीखको हम इस कसौटीपर खरे उतरेंगे।

एक सवाल बार-बार पूछा जाता है कि इतनी भारी रकमकी जरूरत किस लिए है। जवाब सीधा-सादा है। स्वराज्य-कोषमें पैसा देना निजी फायदेके लिए न सही, सार्वजनिक लाभकी बात है। यह रकम खास तौरपर चरखे बाँटने और राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाओंको चलानेमें खर्च की जायेगी। अगर उजड़ी-उखड़ी गृहस्थियोंको भी परिवार का नाम दिया जा सके तो हमारे यहाँ लगभग छः करोड़ परिवार हैं। इन परिवारोंको चरखे देकर इन्हें सच्ची और खुशहाल गृहस्थियाँ बनाना है। इसके लिए कमसे कम एक करोड़ रुपया तो चाहिए ही; इससे कममें कताईको घर-घर नहीं पहुँचाया जा सकता। उसी तरह अपनी शिक्षा-प्रणालीके पुनर्निर्माणके लिए भी हमें एक करोड़से ज्यादा ही रुपयेकी जरूरत होगी।

दूसरा सवाल यह पूछा जाता है कि यह सब पैसा खर्चने और उसका हिसाब रखने में ईमानदारी बरती ही जायेगी इस बातकी क्या गारंटी है? इसके जवाब में पहली बात तो यह कि हमारे पास सर्वश्री छोटानी और जमनालाल जैसे प्रामाणिक कोषाध्यक्ष हैं, जिनकी ईमानदारीमें सन्देह किया ही नहीं जा सकता। दूसरे, हमारे पास पण्डित मोतीलाल नेहरू-जैसे बहुत काबिल, तजुर्बेकार और उतने ही खरे एवं ईमानदार मन्त्री हैं। और तीसरे यह कि हमारे पास देशके पन्द्रह प्रतिनिधियोंकी एक सदा चौकस कार्य समिति है, जिसकी कांग्रेसकी कार्रवाइयोंका कारगर ढंगसे नियन्त्रण करनेके लिए महीने में कमसे कम एक बार बैठक होती है। यह तो हुई अखिल भारतीय पैमाने पर हिसाब-किताबकी बात। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी कुल कोषका सिर्फ चौथाई हिस्सा खर्च कर सकती है। बाकी तीन चौथाई हिस्सा प्रान्तीय (प्रादेशिक) कमेटियोंके पास उनकी अपनी जरूरतोंके लिए छोड़ दिया जाता है। और हर प्रान्त से यह उम्मीद की जाती है कि वह अपने आय-व्ययका ठीक ब्यौरा रखेगा और पैसे-पैसेको समझ-बूझकर खर्च करेगा। फिर केन्द्र और प्रान्तके आय-व्ययके पूरे हिसाबकी जाँचके लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी लेखा-परीक्षक नियुक्त करेगी।

जैसी व्यवस्था रुपए-पैसे के लिए है, ठीक वैसी ही सदस्योंकी भरती और चरखोंके निर्माण एवं वितरणके बारेमें भी है। ये तीनों चीजें हमारी रचनात्मक सामर्थ्यकी सीधी और कारगर कसौटियाँ हैं। कांग्रेस और खिलाफत के कार्यकर्त्ताओंको मेरा यह सुझाव है कि वे महीने के आखिरी दस दिनोंको कांग्रेस-दिवसोंके रूपमें मनायें और बेजवाड़ा-कार्यक्रम पूरा करनेके लिए अपनी पूरी ताकत लगा दें। न भाषण देने की जरूरत है और न सभाएँ करनेकी।