पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३२५

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टिप्पणियाँ २९५ उन्होंने सार्वजनिक घोषणाकी आवश्यकताको समझा । मैं श्री गोदरेज तथा सम्पूर्ण पारसी समुदायको बधाई देता हूँ। मैं यह भी बता देना चाहता हूँ कि बम्बईमें चन्दा करनेके सप्ताह-भरमें एक दिन भी ऐसा नहीं गया जब कि पारसियोंने चन्दे न दिये हों। पारसी महिलाएँ तथा पुरुष घर-घर जाकर भी चन्दा कर रहे हैं। वे धरना भी दे रहे हैं। समाचारपत्रोंमें भी सभी पारसी-समाचारपत्र आन्दोलनके विरोधी नहीं हैं। पर श्री गोदरेजकी उदारताके कारण पारसियोंको समस्त भारतमें सहज ही सर्वप्रथम स्थान प्राप्त हो गया है। वैसे तो पारसी रुस्तमजीकी ५२,००० रुपयेकी राशि ही पारसियोंको सम्मानित स्थान दिलाने के लिए यथेष्ट थी किन्तु श्री गोदरेजने उन्हें सर्वप्रथम स्थान दिला दिया है। खतरेकी सम्भावना शराबकी दुकानोंपर धरना देना पारसियोंसे बहुत सम्बन्ध रखता है। हमें अपने पारसी देशवासियोंके प्रति बहुत सहिष्णुतासे काम लेना होगा। धरना देना हम बिलकुल तो बन्द नहीं कर सकते, पर हमें चाहिए कि हम शराबके व्यापारियोंसे मिले, उनकी कठिनाइयोंको समझें, और अपनी कठिनाइयाँ उन्हें बतायें। श्री गोदरेजने अपने चन्देकी रकमको मद्यनिषेध तथा पददलित वर्गों के उत्थान-सम्बन्धी कायोंके लिए निर्धारित कर दिया है। अत: हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि सभी पारसी अवश्य ही महान् मद्यनिषेध आन्दोलनके विरोधी हैं। यदि नरमदलीय मन्त्रिगण पूरे साहसके साथ नीलामम मिली सारी रकम लौटा नहीं देते, और शराबकी दुकानोंको बन्द नहीं कर देते तो इस समय मद्यनिषेध आन्दोलनके दौरान सबसे अधिक भय है हिंसाके विस्फोटका । मैं उन्हें विश्वास दिलाता हूँ कि आन्दोलनको संयमित-नियन्त्रित किया जा सकता है, पर उसे रोका नहीं जा सकता । लोग शराबकी दुकानोंको बन्द करने तथा उसे दवाके दुकानदारों द्वारा दवाके रूपमें बेचे जानेके सिवा अन्य किसी भी रूपमें बेचे जानेको अपराध माननेपर तुले हुए हैं। यह ऐसा मामला है जिसमें जरा भी विलम्बकी गुंजाइश नहीं है। आत्मशुद्धिकी प्रक्रिया श्री अब्बास तैयबजीको सभी जानते हैं। जबसे उन्होंने कांग्रेस कमेटीकी पंजाब रिपोर्ट पर काम किया है तबसे वे देशकी कुछ-न-कुछ सेवा करते ही रहते हैं। पर असहयोगने उनके जीवनमें क्रान्तिकारी परिवर्तन कर दिया है, जैसा कि अन्य बहुत-से लोगोंके जीवनमें भी किया है। श्री अब्बास बूढ़े होते हुए भी खेड़ामें रात-दिन काममें जुटे हुए हैं, ताकि बेजवाड़ा कार्यक्रमके अनुसार खेड़ाको जो-कुछ करना है, उसे वह पूरा कर दे। वे किसानों-जैसे कठोर जीवनके आदी नहीं है। फिर भी वे इस समय खेड़ाके सामान्य किसानोंके साथ, उन्हींकी मर्जी और सुविधाका खयाल रखते हुए, मिलने-जुलने- में लगे हुए हैं। उनके साथ काम करनेवाले नवयुवक मित्र मुझे बतलाते हैं कि शक्ति और परिश्रममें वे उनमें से प्रत्येकको मात दे रहे हैं। मुझे विश्वास है कि पाठकगण १. तात्पर्य पंजावमें हुए उपद्रवोंकी जाचके लिए कांग्रेस द्वारा नियुक्त उप-समितिकी रिपोर्टसे है; देखिए खण्ड १७, पृष्ठ १२८-३२२ । Gandhi Heritage Portal