पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/३४७

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भाषण : बोरीवलीकी सभामें ३१७ करने के लिए ही कहा है। अगर आप सब एक होकर संकल्प करें, तो आप इसी क्षण स्वराज्य प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन आप तो इतनी सारी जातियोंमें विभक्त हैं। अगर हिन्दू यह सोचें कि मुसलमान उनके जन्मजात शत्रु हैं और इसलिए उनसे घृणा करना अपना कर्तव्य मान लें, तो आप कभी स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सकते। आप भयके कारण ही अस्पृश्यताको दूर करनेसे भागते हैं। जून मासके इस आखिरी दिन, उच्च संकल्प और महत्त्वके इस दिन मैं आपसे कहूँगा कि इसी भयने आपको अपने भाइयोंको दलित रखने और उनसे पृथक जीवन व्यतीत करने के लिए विवश किया है। जबतक आपके दिलोंमें गरीबोंके लिए करुणा और दयाका भाव नहीं जागता, जबतक आपके दिलों में अपने भाइयोंके प्रति प्रेम-भाव नहीं उत्पन्न होता तबतक आप भारतीय स्वराज्यके योग्य नहीं होंगे। मुझे एक करोड़ रुपयोंकी उतनी चिन्ता नहीं, मैं उसकी इतनी परवाह नहीं करता, क्योंकि किसी-न-किसी तरह आप यह रकम इकट्ठी कर ही लेंगे। लेकिन मैं आपसे जो चाहता हूँ वह यह है कि आप अपने दलित भाइयोंसे प्यार करें। मैं जिस स्वराज्यकी स्थापना करना चाहता हूँ वह घृणा और भयपर आधारित नहीं होगा, मेरा स्वराज्य तो न्याय और सत्यपर आधारित होगा। वह धर्मराज्य होगा। कलसे आप लोग मुझे पैसा मांगते हुए, उसकी चर्चा करते हुए नहीं सुनेंगे। आप मुझसे कुछ और ही सुनेंगे। कलसे आपको सभी विदेशी वस्तुओंका व्यापार छोड़ना होगा। जो विदेशी कपड़ेका लेन-देन करते हैं, उन्हें उसे छोड़ देना होगा। विलायती कपड़ेका व्यापार करनेवालों को यह व्यापार छोड़ देना होगा और मैं बहनोंसे अपील करता हूँ कि वे विदेशी वस्त्र पहनना छोड़ दें और खद्दर पहनें। अगर आप देशके प्रति अपना कर्तव्य निभाना चाहते हैं तो आपको विदेशी वस्त्रोंका त्याग करके खद्दर पहनना चाहिए। अगर मेरी बहन और बेटियाँ मुझे प्यार करती हैं और अगर उनके दिलों में मेरे प्रति तनिक भी आदर-भाव है तो उनसे अपील करता हूँ कि वे विदेशी वस्त्र पहनना छोड़ दें और हमेशाके लिए विलासिताके इन उपकरणोंको त्याग देनका पक्का निश्चय कर लें। यहाँ में आपको एक व्यक्तिगत अनुभव सुनाऊँगा। अभी पिछले दिन ही मेरी पत्नीने मुझसे कहा कि वह जो मोटे खद्दरकी साड़ी पहने हुए है, उससे उसे खाना पकाने और घरका काम-काज करने में असुविधा होती है और वह मुझसे कुछ हलका और महीन वस्त्र पहननेकी अनुमति चाहती है। जैसे में जो कुछ करना चाहूँ वह करने की उसने मुझे पूरी स्वतन्त्रता दे रखी है, वैसे मैंने भी उसे सभी बातोंमें पूरी स्वतन्त्रता दे रखी है। इस हालतमें में स्वभावतः उससे कुछ करनेको नहीं कहना चाहता था। लेकिन मुझे अपनी पत्नीसे कहना पड़ा कि अगर वह मेरा भोजन खादी पहनकर नहीं पका सकती तो अच्छा हो कि वह मेरे लिए कुछ पकाये ही नहीं, क्योंकि मैं अपवित्र विदेशी कपड़े पहनकर बनाये गये भोजनमें से कुछ भी ग्रहण नहीं करूंगा। में अपनी २०१४ GandhiHearan the free (5813 ta -13.