पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 20.pdf/४१७

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श्रद्धाका स्वरूप ३८५ गोखलेकी बात कुछ दूसरी थी। कह नहीं सकता क्यों। कालेजके अहातेमें उनके मकानपर मैं उनसे मिला था। ऐसा लगा जैसे कोई पुराना मित्र मिल गया हो, बल्कि यों कहिए जैसे लम्बी जुदाईके बाद माँ मिल गई हो। उनका सौम्य चेहरा देखकर मैं एकदम आश्वस्त हो गया। उन्होंने मेरे व्यक्तिगत जीवनके बारेमें, आफ्रिकामें मेरे कामके बारेमें, बड़ी बारीकीसे छोटीसे-छोटी बातें पूछनी शुरू की, इस प्रकार उन्होंने मेरे हृदयमें घर कर लिया। उनसे जुदा होते समय मैंने अपने मनमें कहा -- "तुम्ही हो वह, जिसकी मुझे तलाश थी।" तबसे गोखलेने मुझे अपनी आँखोंसे ओझल नहीं होने दिया। १९०१ में जब मैं दुबारा दक्षिण आफ्रिकासे आया, तो हम एक-दूसरेके और भी नजदीक आये। उन्होंने जैसे मुझे अपने हाथमें लेकर गढ़ना शुरू कर दिया। उन्हें इसका बहुत खयाल रहता था कि मैं कैसे बोलता हूँ, कैसे कपड़े पहनता हूँ, कैसे चलता हूँ, क्या खाता हूँ इत्यादि। मेरी माँ भी मेरा इतना खयाल नहीं रखती होगी, जितना गोखले रखते थे। जहाँतक मुझे याद है, हम एक-दूसरेसे कुछ नहीं छिपाते थे। वह सचमुच पहली नजरमें प्रेम हो जानेका मामला था; यह प्रेम १९१३ की कठोर तनावपूर्ण स्थितिमें भी टिका रहा। उनमें मुझे वे सारी बातें दिखीं जिनकी मैं एक राजनीतिक कार्यकर्तासे अपेक्षा करता था। वे स्फटिकके समान शुद्ध, मेमनेकी भाँति विनम्र और सिंहके समान शूर थे। उनमें उदारता तो इतनी थी कि वह एक दोष बन गई थी। हो सकता है उनमें इनमें से एक भी गुण न रहा हो, लेकिन मेरे लिए इसका कोई महत्त्व नहीं। मेरे लिए इतना ही काफी है कि मुझे उनमें कोई दोष नहीं दिखाई पड़ा, जिसको लेकर मैं उनकी भर्त्सना कर सकूँ। मेरे लिए वे राजनीतिक क्षेत्रमें सबसे दोषरहित व्यक्ति थे और हैं। यह नहीं कि हममें मतभेद नहीं थे। सामाजिक प्रथाओंके बारेमें अपने विचारोंमें १९०१में भी हममें मतभेद था-- - उदाहरणके लिए विधवा-विवाहके प्रश्नपर। पश्चिमी सभ्यताके मूल्यांकनके सवालपर भी हमने देखा कि हमारे विचार भिन्न-भिन्न हैं। अहिंसापर मेरे कट्टर विचारोंसे उन्होंने स्पष्ट ही मतभेद प्रकट किया था। किन्तु इन मतभेदोंका न उनके लिए कोई महत्त्व था, न मेरे लिए। हमें दुनियाकी कोई चीज एक-दूसरेसे अलग नहीं कर सकती थी। यह अटकल लगाना कि यदि वे आज जीवित होते तो क्या होता, उनकी आत्माका अपमान करना है। मैं जानता हूँ कि मैं उनके नेतृत्वमें काम करता होता। मैंने यह-सब स्पष्टीकरण इसलिए किया है कि उस गुमनाम पत्रसे मुझे चोट पहुँची है, क्योंकि उसमें यह कहा गया है कि मैं अपने राजनीतिक शिष्यत्वके सम्बन्धमें धोखा देता हूँ। क्या मैंने उस दिवंगत आत्माका ऋण स्वीकार करने में कोताही की है ? मैंने सोचा मुझे गोखलेके प्रति अपनी वफादारीकी घोषणा कर १. फर्ग्युसन कालेज, पूना । २. गांधीजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके कलकत्ता अधिवेशनके समय, गोखलेके साथ एक महीनेतक ठहरे थे; देखिए आत्मकथा, भाग ३, अध्याय १७, १८ और १९ । ३. बात उन दिनोंकी है जव गांधीजीने सत्याग्रह छेड़नेका निश्चय किया था; देखिए. खण्ड १२ । २०-२५ Gandhi Heritage Portal