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२५. बाजी लगानेकी लत

अगर आप घोड़ोंपर बाजी लगाना बन्द करवा सकें तो हजारों भारतीय और यूरोपीय गृहणियाँ आपको दुआ देंगी। जबतक मेरे पति 'रेस' (घुड़दौड़) के मैदानमें बाजी लगाने नहीं जाते थे तबतक वे एक आदर्श पति थे। उन्हें अच्छी तनख्वाह मिलती है और वे शराब नहीं पीते, फिर भी हम तंगदस्त हैं और गलेतक कर्ज में डूब गये हैं। और यही हाल, जहाँतक मुझे मालूम है, मेरे-जैसी दूसरी बहुत-सी गृहणियोंका है। मैंने उनके पाँव पड़कर रेसमें जाने से मना किया पर उन्होंने एक न सुनी। पति अपनेको घुड़दौड़में जानेसे न रोक पाये, वहाँ बाजीपर-बाजी हारे और बीबी-बच्चोंको तबाही भुगतनी पड़े, क्या यह बहुत ज्यादती नहीं है ?

यह सच है कि शराबसे हजारों तबाह हो रहे हैं; मगर घोड़ोंपर बाजी लगानेसे तो लाखोंके घर चौपट हो रहे हैं ।

यह वेस्टर्न इंडिया टर्फ क्लब अपने गोरे कर्मचारियोंको जो मोटी-मोटी तनख्वाहें देता है उसका सारा पैसा, सच पूछा जाये तो 'रेस' में जनतासे ही खसोटा जाता है। अगर आप यह जानते होते कि 'टर्फ क्लब' किस चतुराई और घूर्ततासे लोगोंका पैसा लूटता है तो आप मुझसे सहमत होते । भगवान्के लिए जैसे भी हो, इस हालतको सुधारिये। जब पेशेवर शर्तबाज और क्लबके सदस्य [ही ] बाजी लगा सकते थे तब हालत आजसे कहीं अच्छी थी ।

श्रीमान् जी, नई कौंसिलोंके अनेक सदस्योंसे अवश्य ही आपकी जान-पहचान होगी। मुझे पूरी उम्मीद है कि उनकी मददसे रेसोंमें बाजी लगाना बन्द कराया जा सकता है। बाजी लगानेवालोंसे पैसा लेने और जीतनेवालों को पैसा देनेका इन्तजाम अगर सरकार अपने हाथमें ले ले तो मुझे विश्वास है कि बहुत हद-तक हालत सुधर जायेगी। आज तो लाजिमी तौरपर हार आम लोगोंकी होती है और जीत होती है घोड़ोंके मालिकों, घोड़ोंको सिखानेवालों और घुड़सवारोंकी । महज इसलिए कि उसके कुछ बड़े अफसरोंकी घुड़दौड़में गहरी दिलचस्पी है, क्या यह निहायत शर्मकी बात नहीं कि सरकार इस ओरसे आँखें मूंदे रहे ?

मेरे पति सरकारी कर्मचारी हैं, इसलिए यह पत्र बिना दस्तखतके भेजना ही ज्यादा अच्छा रहेगा; लेकिन मैं प्रार्थना करती हूँ कि मैंने जो-कुछ लिखा है उसपर आप ध्यान दें और घोड़ोंपर बाजी लगाना बन्द करवा दें।

यह पत्र कुछ अर्सेसे सफरमें मेरे साथ है। मेरे साथ पाठक भी यह महसूस करेंगे कि पत्र करुणाजनक है। गुमनाम पत्र कभी-कभी ही कामके निकलते हैं। यह है कामका, भले ही लेखिकाने अपना नाम न देना ठीक समझा हो ।