आश्वासन स्वेच्छापूर्वक दिया गया था। अलबत्ता स्पष्ट करके यह दिखाना उनका काम है कि मौलाना मुहम्मद अलीके शिमलाके भाषण के बाद ऐसी कौन-सी नई परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गई हैं जिनके कारण उनकी गिरफ्तारी उचित ठहरती है। निश्चय ही वे मौलाना साहबसे यह अपेक्षा नहीं रखते थे कि वे अब अपने ओठ सी रखेंगे या अपने भाषणोंका स्वर मुलायम कर लेंगे। उनकी क्षमा-याचना बहादुर और निर्भीक आदमियोंके योग्य ही थी। आवेगके क्षणमें अगर उनके मुँह से कोई ऐसी बात निकल गई जिसका मतलब लोगोंको हिंसाके लिए भड़काना लगाया जा सकता था तो उन्होंने उसपर खेद प्रकट कर दिया। मैं जानता हूँ कि अलीबन्धु बहादुर हैं, ईमानदार हैं और धर्मभीरु हैं। उस प्रसिद्ध वक्तव्यके बादसे मौलाना मुहम्मद अली मेरे साथ ही दौरा करते रहे हैं। उन्होंने बहुत-से भाषण दिये हैं। ये सभी भाषण उन्होंने बहुत ओजपूर्ण ढंगसे दिये, फिर भी इनमें उन्होंने अहिंसा के सन्देशका खयाल बराबर रखा है। वे व्यक्तिगत तौरपर अहिंसा के लिए और भी ठोस काम करते रहे हैं। अलीबन्धु लोगोंको बलवानोंकी अहिंसाका सन्देश देते रहे हैं; और उन्होंने दूसरोंसे जैसा करनेको कहा है, वैसा स्वयं करके भी दिखाया है। मद्रास सरकार जानती थी कि हम शान्ति-यात्रापर निकले थे। वह जानती थी कि मौलाना मुहम्मद अली निश्चय ही हिन्दू-मुस्लिम एकताका सन्देश देंगे। उनका सन्देश मोपलोंतक अवश्य पहुँचता, और इससे मोपलोंकी धर्मांधतापर एक अंकुश लग सकता था। अगर उन्हें उपद्रव ग्रस्त क्षेत्रमें जाने दिया जाता तो वे एक बूंद खून बहाये बिना शान्ति स्थापित कर देते। लेकिन कठिनाई यह थी कि उससे सरकारकी प्रतिष्ठाकी अपूरणीय क्षति होती और अहिंसाकी विजय सिद्ध हो जाती।
प्रमाण
अगर मेरे निष्कर्षके समर्थनमें प्रमाणकी आवश्यकता हो तो वह मद्रास पहुँचनेपर मुझे मुख्य सचिवका जो पत्र मिला उससे पूरी हो जाती है। यह है उस पत्रका पाठ :
अगर आप मलाबार जिलेमें जानेका विचार करें तो उस हालत में मुझे आपको यह सूचित कर देनेका निर्देश दिया गया है कि सैनिक अधिकारियोंके विचारसे मार्शल लॉके अधीन आनेवाले क्षेत्रकी स्थिति ऐसी है कि आपका वहाँ जाना या ठहरना वांछनीय नहीं है। मुझे आपको यह बता देने को भी कहा गया है कि सैनिक अधिकारियोंने इस आशयके निर्देश जारी कर दिये हैं कि अगर आप मार्शल लॉवाले इलाकेमें आयें तो आपको वापस लौटा दिया जाये।
अभीतक सरकार यह मानती आई है कि मेरे इरादे नेक हैं। मेरे इरादोंमें उसने कभी कोई शक जाहिर नहीं किया है। हर किसीने इस बातकी साक्षी दी है कि मैं जहाँ कहीं गया हूँ, मेरी उपस्थितिका शान्तिके हकमें अच्छा प्रभाव हुआ है। यह प्रतिबन्धक आदेश -- क्योंकि आदेश तो यह है ही -- मुझे ऐसा माननेको मजबूर कर देता है कि सरकार शान्ति नहीं चाहती, उसकी ओरसे बातोंको जो तिलका ताड़ बनाकर पेश किया जाता है उसका भण्डाफोड़ होने देना वह नहीं चाहती, और जो बात सबसे बुरी है वह यह कि पंजाब के जिस दुष्काण्डकी पुनरावृत्ति अभागे मलाबारमें की जा रही है उसे वह रोकना नहीं चाहती।