था? तब इंग्लैंडमें कितने स्कूलोंमें पढ़ाई हो रही थी? मैं जानता हूँ कि बैरिस्टरीके सभी कालेज और कितने ही दूसरे कालेज करीब-करीब बन्द कर दिये गये थे। मैं जानता हूँ कि बोअर युद्धके समय एक भी बोअर बालकको किताबी शिक्षा नहीं मिल पाई थी। उनकी शिक्षा अपने देशकी खातिर कष्ट-सहनमें ही निहित थी। बात दरअसल यह है कि हमारा यह अहिंसात्मक आन्दोलन कुल मिलाकर इतने शान्त और विनयपूर्ण ढंगसे चल रहा है कि ऐसा हो सकता है कि जो लोग इस सिद्धान्तमें विश्वास नहीं रखते वे उसी प्रणालीके अधीन अपने बच्चोंको शिक्षा देते रहें जिस प्रणालीके खिलाफ हम “लड़ाई कर रहे हैं।” और मैं आज ही बता देता हूँ कि इस विनयसे आन्दोलनको और भी अधिक बल मिल रहा है, भावी इतिहासकार इस बातकी साक्षी कृतज्ञताके साथ देंगे। और अन्तमें, हमें उस शिक्षा-प्रणालीपर गर्व करनेका कोई कारण दिखाई नहीं देता, जिस प्रणालीके अन्तर्गत शिक्षाका लाभ हमारी विशाल आबादीके सिर्फ मुट्ठीभर लोगोंको ही मिल पाता है। हम अपनी बेहोशीमें नहीं देख पा रहे हैं कि यह शिक्षा-प्रणाली हमारे देशपर कैसा विनाशकारी प्रभाव डाल रही है। इस प्रणालीमें ऐसी कोई चीज ढूंढ़ निकालनेकी मैंने बहुत कोशिश की है जो इस देशसे सम्बद्ध महत्वपूर्ण समस्याओंके समाधानमें किसी तरह सहायक सिद्ध हो सके। लेकिन मुझे उसमें ऐसी कोई चीज नहीं मिली। आज ७, ८५१, ९४६ बच्चे स्कूलोंमें शिक्षा पा रहे हैं। मेरा दावा है कि वर्तमान शिक्षा-प्रणाली ऐसी है कि अगले पचास वर्षोंमें इस संख्याके दुगुनी होनेकी भी सम्भावना नहीं है। अगर शिक्षाको सर्वव्यापी बनाना है, तो वर्त- मान प्रणालीमें आमूल परिवर्तन करना होगा। यह सिर्फ असहयोगसे ही सम्भव है। इससे किसी अधिक नरम उपचारसे भारतीय जनताकी अन्तरात्माको जाग्रत नहीं किया जा सकता।
यंग इंडिया, ३-११-१९२१
१७१. अफगानिस्तानमें हिन्दू
‘यंग इंडिया’
महोदय,
- यदि ऐसा कोई अत्यन्त साधारण हिन्दुस्तानी, जिसकी इस बातमें कोई आस्था न हो कि असहयोग द्वारा स्वराज्य प्राप्त किया जा सकता है, जो यह समझता हो कि खिलाफत आन्दोलनसे ऐसे लोगोंके हाथ मजबूत हो रहे हैं जो हृदयसे एक मुस्लिम राज्यकी―जो मौजूदा ‘दानवी’ शासनसे कहीं ज्यादा मनमानी करनेवाला और अन्यायकारी होगा― स्थापनाका प्रयास कर रहे हैं, परन्तु इतनेपर भी जो भारतीय अपने ढंगसे देशको प्यार करता हो और जिसकी