४६. भाषण:विषय समितिको बैठकमें[१]
२८ दिसम्बर, १९२१
आज विषय समितिने अपनी अन्तिम बैठक समाप्त करनेसे पूर्व पण्डित मदनमोहन मालवीयका वह प्रस्ताव भारी बहुमतसे अस्वीकार कर दिया जिसमें कांग्रेससे आग्रह किया गया था कि वह उचित शर्तोंपर गोलमेज सम्मेलनकी इच्छा व्यक्त करे और कलके मुख्य प्रस्तावमें से उस धाराको निकाल दे जिसमें उग्र रूपसे कानूनको सविनय अवज्ञा करनेकी सलाह दी गई है।
समितिको बैठक सुबह आठ बजे शुरू हुई। उसमें हकीम अजमल खाँ नहीं आ सके थे…।
तब गांधीजी अध्यक्ष चुने गये।
कार्रवाई प्रारम्भ करते हुए गांधीजीने समितिको बताया कि मद्रासके सदस्य, जिनमें सर्वश्री विजयराघवाचार्य, कस्तूरी रंगा आयंगार[२] और सत्यमूर्ति[३] भी हैं, मुझसे बहुत आग्रहपूर्वक कह रहे हैं कि वाइसरायके कलकत्तामें भाषणके जवाबमें एक प्रस्ताव पास करना वांछनीय है। इस प्रस्तावमें कांग्रेसकी ओरसे जोरदार शब्दोंमें यह घोषणा की जानी चाहिए कि भारतके भाग्यका निर्णय ब्रिटिश संसदके हाथोंमें नहीं है, वरन् कांग्रेसके हाथों में है और ब्रिटिश संसद तो सिर्फ भारतके लोगोंकी इच्छा ही पूरी कर सकती है। उन्होंने कहा कि दूसरी ओर पण्डित मालवीय और श्री जिन्ना यह जोर दे रहे हैं कि गोलमेज सम्मेलनके सुझावके सम्बन्धमें कांग्रेसको निश्चय ही अपनी स्थिति बतानी चाहिए।
गांधीजीने दोनों दलों द्वारा सुझाये गये आधारपर प्रस्ताव स्वीकार करनेका काम समितिपर छोड़ दिया क्योंकि वे खुद ऐसा प्रस्ताव नहीं तैयार कर सके थे जो सदस्योंकी इच्छा अनुसार होता। उन्होंने कहा, मेरे, पण्डित मालवीय, श्री दास, मौलाना अबुल कलाम और श्री श्यामसुन्दर चक्रवर्तीके बीच गोलमेज सम्मेलनके बारेमें तारोंका आदान-प्रदान हुआ है। मैं सर्वश्री दास और चक्रवर्तीसे इस महीनेकी २४ तारीखको हड़ताल न करनेकी बातपर सहमत हो गया था बशर्ते कि स्वयंसेवक संगठनको विच्छिन्न करने और आम सभाओंको निषिद्ध ठहरानेवाली विज्ञप्तियाँ वापस ले ली जायें और इन विज्ञप्तियोंके अन्तर्गत जो सत्याग्रही कैद भुगत रहे हैं वे रिहा कर दिये जायें। श्री गांधीने कहा कि मैं अपनी माँग थोड़ी-सी बढ़ा रहा हूँ। मैं चाहता हूँ कि फतवा-सम्बन्धी