पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/१८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

हिन्दुओं, मुसलमानों, ईसाइयों, पारसियों और यहूदियोंका—यह धर्म है कि हम भविष्यका विचार छोड़कर वर्तमानका सुधार करनेमें ही लग जायें। उस धर्मका पालन करनेमें प्रभु हम सबका सहायक हो!

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ८-१-१९२२

६९. टिप्पणियाँ
ईसाइयोंमें जागृति

देखता हूँ कि ईसाई भाइयोंमें भी असहयोगने बड़ी जागृति उत्पन्न कर दी है। समस्त भारतके ईसाइयोंका एक सम्मेलन कुछ दिन पहले लाहौर में हुआ था। उसके अध्यक्ष थे, श्री मुकर्जी। उसमें स्वदेशी तथा मद्यनिषेधके सम्बन्धमें अच्छे-अच्छे प्रस्ताव पास किये गये। उनकी प्रत्येक बातमें स्वराज्यकी ध्वनि सुनाई दे रही थी। वक्ताओंने खादी पहननेपर बहुत जोर दिया। इस बातको अब सब लोग समझ गये हैं कि खादी गरीबोंके लिए जीवन-रूप है और चरखा गरीबोंके घरकी बरकत है। अतएव अब ईसाई भाइयोंने भी उसको अपना लिया है। इस सम्मेलनके सभापतिने यद्यपि असहयोगके विरुद्ध विचार प्रकट किये तथापि स्वराज्य तो वे भी चाहते हैं। उन्होंने अपने भाषण में सरकारकी दमन नीतिकी तीव्र निन्दा की।

देशी राज्योंमें युवराज

यह सवाल पूछा गया है कि जब युवराज देशी राज्योंमें जायें तब वहाँके लोगोंको क्या करना चाहिए? मैं समझता हूँ कि देशी राज्योंके लोग अपने राजाओंसे असहयोग नहीं कर रहे हैं। ऐसी अवस्थामें वे ऐसा व्यवहार नहीं कर सकते जिससे देशी राज्योंकी स्थिति विषम हो जाये। हाँ, वे राज्यके अतिथिका स्वागत-सत्कार करनेके लिए बाध्य नहीं हैं, परन्तु इससे उन्हें उनके स्वागतके विरुद्ध आन्दोलन खड़ा करनेका अधिकार प्राप्त नहीं होता। अतएव जब युवराज देशी राज्योंमें जायें तब वहाँके लोगोंको हड़ताल नहीं करनी चाहिए और न विरोध सभाएँ। परन्तु वहाँके समझदार लोगोंका भारत के दूसरे भागोंसे तो निकट सम्बन्ध अवश्य होना चाहिए। अतः वे जहाँतक हो सके, युवराजके स्वागत-सत्कारमें शरीक न हों। देशी राज्योंमें लोकसत्ता जैसी चीज तो बहुत ही कम है, या है ही नहीं। [इसलिए] वहाँ राजाके प्रत्येक कार्यमें लोगोंका शामिल होना जरूरी नहीं होता। वहाँ तो लोग उन्हीं कामोंमें शामिल होते हैं जिन्हें या तो वे खुद अच्छा समझते हैं या जिनमें उन्हें जबरदस्ती किये जानेका डर रहता है। इन सब बातोंमें यदि विनयपूर्वक व्यक्तिगत स्वातन्त्र्यका उपयोग किया जाये तो वह उचित है। देशी राज्योंमें राजा और प्रजाका सम्बन्ध स्वार्थमूलक है। राजा यदि अच्छा हो तो वह प्रजाका हितसाधन करता है। यदि बुरा हो तो फिर प्रजाके पास शस्त्र अथवा सत्याग्रह के सिवा तीसरा साधन नहीं है। ब्रिटिश भारतमें सरकार