पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बुरे व्यवहारकी आशा कर रखी है । अतएव यह सरकार हमारी कार्रवाई रोकने या कम करने के लिए चाहे जो करे मुझे अचम्भा नहीं होता । मुझे न आश्चर्य होता है और न सन्ताप ही । वह तो अपनी हस्तीकी रक्षाके लिए ही लड़ रही है; और मैं समझता हूँ कि यदि मैं उसकी जगहपर होता तो मैं भी वैसा ही करता जैसा वह कर रही है । शायद इससे भी ज्यादा करता । हम उससे अपने अधिकारोंका उपयोग न करनेकी आशा ही क्यों करें । हमारा काम तो सिर्फ इतना ही है कि हम उसकी मददके बिना अपने निर्वाहका और असहयोगको जारी रखनेका जरिया खोज निकालें । यदि हमारी खबरोंका एक प्रान्तसे दूसरे प्रान्तमें भेजा जाना बन्द कर दिया जाये तो भी हमें अपने चित्तको स्थिर रखना चाहिए । कार्यक्रम तो सभी प्रान्तोंको अच्छी तरह मालूम ही है; अतः उन्हें अपना-अपना काम करते रहना चाहिए । बल्कि मैं तो इसमें फायदा ही देखता हूँ । यदि कहीं किसी प्रान्तमें कमजोरी आ गई तो खबरोंके अभाव में हमपर उसका कुछ असर नहीं पड़ सकेगा । मान लीजिए गुजरातवाले कुछ कमजोरी दिखा दें और सरकारके आगे घुटने टेक दें या मान लीजिए कि असमके लोग पागल हो उठें या अचानक हिंसा-काण्ड कर बैठें तो इसका बुरा प्रभाव पंजाबपर नहीं पड़ेगा । वैसे ऐसी कोई आशंका नहीं है । क्योंकि असम उत्तेजनाके जबरदस्त कारणोंके होते हुए भी अनोखी शान्तिका परिचय दे रहा है और मुझे आशा है कि गुजरात भी शीघ्र ही अपना पौरुष प्रकट करके दिखायेगा । और प्रान्तोंकी अपेक्षा शायद बम्बई प्रान्तकी सरकार अपने कामको ज्यादा अच्छी तरह करना जानती है । वह उनसे अधिक सहनशील और कार्यकुशल तो निश्चय ही है । उसने असहयोगियोंको काफी गुंजाइश दे रखी है । परन्तु चूंकि अपनी अभीष्ट वस्तु न मिलनेकी अवस्थामें असहयोगी फाँसी-तकपर चढ़ जानेको राजी हैं, वे गुंजाइशका भरपूर उपयोग करते चले जा रहे हैं । लेकिन यह तो प्रसंगके बाहर की बात हुई । भारतका वायुमण्डल विलक्षण है, कहा नहीं जा सकता इसके आकाशमें क्षितिजपर उठा हुआ एक छोटा-सा बादल भी कब कितना भयंकर रूप धारण कर ले । मैं जो बात आपसे कहना चाहता हूँ वह यह कि हमें तमाम उलझनों का स्वागत और सामना करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए । उनको देखकर हम कभी विचलित न हों, कभी न घबरायें । जिस बातकी आशा की थी जब वह बात हो जाये तब तो हरगिज एक कदम भी पीछे न हटें ।

धीरे-धीरे किन्तु निश्चित रूपसे

यदि हमें तारकी विशेष सुविधा न दी जाये तो हमें डाककी मार्फत अपना काम चलाना चाहिए । यदि डाकका रास्ता भी हमारे लिए बन्द कर दिया जाये तो हमें हरकारोंसे काम लेना चाहिए । इधर-उधर आने-जानेवाले मित्र हमपर यह कृपा कर सकेंगे । जब रेलों का इस्तेमाल भी हमारे लिए बन्द कर दिया जाये तो हमें यातायात के अन्य साधनों का उपयोग करना चाहिए । कितनी भी बाहरी रुकावटें क्यों न हों; हमारे कामको गति धीमी नहीं पड़ सकती । बशर्ते कि हमें ईश्वरमें ऐसा विश्वास हो कि हम कह सकें “अशरणशरण, शरण हम तेरी", सभी धर्मोंमें इस आशयकी प्रार्थनाएँ मिलती हैं । यदि हम केवल परमात्माको ही अपना सहारा मानें और अपनेको उसकी