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शारीरिक यातना देना चाहती है, तो इस तरह बेइज्जत होनेसे हमें अदबके साथ इनकार कर देना चाहिए और जान-बूझकर की जानेवाली इस बेइज्जतीका मुकाबला करने और उसके बदले में मिलनेवाली शारीरिक यातनाओंको सहन करनेका बल प्राप्त करनेके लिए ईश्वरका सहारा लेना चाहिए। वीर अली भाई और उनके साथी इस तरह कराची जेलको सुधार रहे हैं; वे अवश्य ऐसा करें। इसी तरह स्वाभिमानी सिन्धी अध्यापक कृपलानीजी बनारसके कैदखाने को सुधारें, क्योंकि मुझे मालूम हुआ है कि बनारस जेलमें लाये गये असहयोगी कैदियोंका जो अकथनीय अपमान किया जा रहा है उसे प्रो० कृपलानी तथा उनके विद्यार्थी बरदाश्त नहीं कर पा रहे हैं । यह बात समझमें नहीं आती कि संयुक्त प्रान्तमें जहाँ कि राजनैतिक कैदियोंके साथ सरकारका बरताव आदर्श माना जाता है, एक ओर आगरा और लखनऊमें तो जैसा कुछ होना चाहिए वैसा ही हो रहा है परन्तु दूसरी ओर बनारसमें तथा अन्यत्र उसके विपरीत हो रहा है। क्या इसका यह अर्थ है कि स्थानीय अधिकारी निरंकुश हो गये हैं और वे आला अफसरोंके हुक्मकी परवाह नहीं करते और उनकी मर्जी ही कानून बन गई है ? इन घटनाओंसे लोग यह अन्दाज लगा सकते हैं कि भारतकी जेलोंमें अपराधियोंपर कैसी बीतती होगी। मैं यह नहीं मानता कि खास तौरपर केवल राजनैतिक कैदी ही इस व्यवहारके लिए चुने गये हैं। बल्कि मेरी तो धारणा यह है कि जो वास्तवमें मुजरिम हैं उनके साथ तो और भी बुरा बरताव किया जाता है; क्योंकि वे तो चुटकी बजाते ही दबाये जा सकते हैं । जेलर और वार्डर तो प्रायः गैर-जिम्मेदार होते ही हैं, इसलिए वे मनमानी करते हैं और अपराधियोंके साथ बड़ी ही निर्दयतासे पेश आते हैं। हम लोगोंने आजतक अपने अज्ञान अथवा स्वार्थके वश इस शासन-प्रणालीको सहायता पहुँचाई है, जिसमें कि इने-गिने लोगोंने करोड़ों मनुष्योंको गुलाम बना रखा है। हमें भगवान्‌ के सामने मानवताके विरुद्ध किये गये इन अत्याचारोंके लिए उत्तरदायी होना पड़ेगा जो कानून और व्यवस्थाके नामपर परन्तु वास्तवमें मुट्ठी भर लोगोंके हितार्थ किये गये हैं और यदि आज इतने असहयोगियोंका बलिदान न हुआ होता तो इनपर परदा पड़ा ही रहता और किसीको इनका कुछ पता न चलता।

कैदियोंकी जो बेइज्जती की जा रही है उसे देखते हुए कराची जेल में अधिकारियोंकी उस नीचताकी आलोचना करना व्यर्थ लगता है, जिसका परिचय देते हुए उन्होंने मौलाना मुहम्मद अलीको जेलके डाक्टरकी बताई हुई तथा उनके रोगके निवारणार्थ जरूरी खुराक भी नहीं दी । मेरा खयाल है कि मौलानाको पनीर या काफी मात्रामें मूंगफली न देनेकी खबर गलत निकलेगी अथवा उन्हें ये चीजें न दिये जानेका कोई समुचित कारण होगा।

कैसा सलूक किया जा रहा है, इसकी बात छोड़िए । जो लोग जेलोंके बाहर हैं। उनका कर्त्तव्य तो स्पष्ट है । हमें रोषमें आकर बिना सोचे-समझे कोई गलत काम नहीं कर बैठना चाहिए। हमारा वास्ता ऐसी शासन-प्रणालीसे पड़ा है जो पूरी तरह सड़ चुकी है और जिसने क्या अंग्रेज, क्या भारतीय, सारी मनुष्य जातिका मान घटाया है। असल में हम एक रोगसे जूझ रहे हैं। मैं यह नहीं मानता कि अंग्रेज या हिन्दु-