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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कि उनकी दृढ़ कर्त्तव्य-भावनाका यही तकाजा है । यदि हम अपने प्रतिपक्षियोंके प्रति आवश्यक विनम्रता, उदारता और सहनशीलताके भाव ही अपने हृदयमें रखें और उनकी ईमानदारीपर सन्देह न करें, तो मैं जानता हूँ कि हम कितने ही ऐसे सज्जनोंको अपनी ओर कर सकेंगे जो आज हमारी असहिष्णुताकी बदौलत हमारे खिलाफ खड़े हैं। जब बहुसंख्यक लोग असहिष्णु हो जाते हैं तब लोग उनसे डरते हैं, उनका अवि- श्वास करते हैं, और अन्तमें उनसे घृणा करने लगते हैं, और यह ठीक भी है। यदि असहयोगियोंके पक्ष में जनताका बहुत बड़ा भाग हो, जैसा कि मुझे विश्वास है कि है, तो अवश्य ही उनके लिए यही उचित है कि वे अपने मतोंपर पूरी दृढ़तासे डटे रहने के साथ-साथ अल्पसंख्यक लोगोंके साथ सहनशीलता, दया और आदरका बरताव रखें । असहिष्णुता एक प्रकारकी कमजोरी है और उसके द्वारा इस आरोपकी पुष्टि होती है कि यद्यपि इस आन्दोलनका उद्देश्य द्वेष पैदा करना नहीं है पर उससे द्वेष फैलता अवश्य है । मुझे आशा है कि ऊपर उद्धृत दोनों पत्र असहयोगियोंको अपने तईं सावधान कर देंगे ।

गोरखपुरकी दुर्घटना असहिष्णुताके सबल उदाहरणके सिवा और क्या थी ? हम अक्सर इस बातको भूल जाते हैं कि हमारा एक कर्त्तव्य यह भी है कि हम पुलिस और फौजवालों को भी अपने मतका बना लें। हम आतंकके बलपर ऐसा कभी नहीं कर सकते । लोगों द्वारा सामूहिक तौरपर किये गये उन अमानुषिक कार्योंने पुलिसमें व्याप्त अन्धेरगर्दी और भ्रष्टाचारको और भी बढ़ा दिया है, अब उसने बदलेकी कार्रवाई शुरू कर दी है जिससे हमें सदमा पहुँचा है । हमें यह बात सदैव ध्यानमें रखनी चाहिए कि भ्रष्ट सरकार और भ्रष्ट पुलिसका होना सूचित करता है कि सरकार और पुलिस के भ्रष्टाचार के सामने सिर झुकानेवाले लोगों में भी भ्रष्टाचार मौजूद है । आखिरकार इस कथनमें भी बहुत कुछ सत्य है कि " यथा राजा तथा प्रजा" । इस बात को समझने के लिए यह जरूरी नहीं कि हम धार्मिक दृष्टिसे अहिंसा के सिद्धान्तके कायल हों ही कि हमें पुलिस और फौजको, जिनमें ज्यादातर हमारे ही देशभाई हैं, दया और सहनशीलताके द्वारा, बल्कि उनकी पाशविकता को भी सहकर अपनी तरफ करना है । निश्चय ही अधिकांश मामलोंमें वे बेचारे जानते हीं नहीं हैं कि वे कर क्या रहे हैं।

सविनय अवज्ञाका मर्म

एक मित्र, जो कांग्रेस-अधिकारी हैं, शिमला से लिखा है :[१]

... विभिन्न कांग्रेस-संगठनोंके कुछ सदस्योंने कानूनकी अवज्ञा करने के कुछ नये तरीके निकाले हैं। उदाहरणार्थ, वे सरकार द्वारा गैर-कानूनी घोषित किये गये उस 'जख्म-ए-पंजाब' जैसे कुछ नाटकोंका अभिनय करते हैं, जो कुछ समय पहले मुल्तान में खेला गया था और हालमें ही शिमला में भी खेला गया तथा दोनों जगह इस सिलसिले में कुछ गिरफ्तारियां भी हुई। अखिल
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